बता दे, लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) में पिछले 4 दिनों से जो कुछ भी चल रहा है, इसकी पूरी पटकथा पिछले 5 महीने से लिखी जा रही थी। इसे लिखने वाले जनता दल यूनाइटेड (JDU) के शीर्ष नेता हैं। उन्होंने ही जातीय आधार पर बाहुबली और LJP के पूर्व सांसद सूरजभान सिंह को अपने भरोसे में लिया।

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फिर सूरजभान के जरिए ही JDU के नेता एक-एक सीढ़ी चढ़ते हुए दिवंगत रामविलास पासवान के भाई व चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस तक पहुंचे। अंदर ही अंदर बातों और मुलाकातों का दौर चला। फिर जो कुछ हुआ, वह आप सब के सामने है।

पारस बने लोजपा के नए अध्यक्ष

लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) में दो फाड़ होने के बाद पारस गुट की कमान पशुपति कुमार पारस के हाथों में सौंप दी गई है। गुरुवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पारस को पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया है।

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वही पार्टी की कमान संभालते ही पशुपति कुमार पारस ने भतीजे चिराग पासवान पर निशाना साधते हुए कहा है कि ‘भतीजा तानाशाह हो जाएगा तो चाचा क्या करेगा। यह प्रजातंत्र है, कोई आजीवन अध्यक्ष नहीं रह सकता।

LJP में टूट की इनसाइड स्टोरी : LJP के सभी बागियों के हिस्से एक-एक सीट

जानकारी के मुताबिक, LJP से बगावत करने वाले सांसदों को JDU की तरफ से एक-एक एमएलसी की सीट ऑफर हुई है। इस बड़े ऑफर पर JDU आलाकमान की सहमति भी मिल चुकी है।

ये है लोजपा के बागी सांसद

चिराग पासवान को अपनों ने ही दगा दिया

LJP से जुड़े सूत्र बताते हैं कि चिराग पासवान को अपने चाचा से ज्यादा विश्वास सूरजभान सिंह पर था। JDU नेतृत्व के संपर्क में आने के बाद सूरजभान का मन बदल गया। वो उनके रंग में रंगते चले गए। अंदर ही अंदर LJP की जड़ों को काटने में जुट गए, जिसमें उन्हें सफलता भी मिल गई।

गौरतलब है कि पार्टी तोड़ने की कोशिश उस वक्त भी हुई थी, जब पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान जिंदा थे। हालांकि पार्टी टूटने के डर से वो सख्त कदम नहीं उठा पाते थे। इस वजह से चुनाव के टिकट बांटने के मामले में उन्हें सूरजभान सिंह और उनका साथ देने वाले नेताओं की बातों को जबरन मानना पड़ता था। चाचा पशुपति कुमार पारस और दिवंगत हो चुके सबसे छोटे चाचा रामचंद्र पासवान का भी यही हाल था।

चिराग पासवान अपने पिता के बिल्कुल विपरीत हैं। वो सख्त फैसले लेना जानते हैं। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने टिकट बंटवारे में किसी को हस्तक्षेप नहीं करने दिया था। इस कारण पशुपति कुमार पारस, प्रिंस राज और सूरजभान समेत इनके गुट के नेताओं ने कहीं भी पार्टी की तरफ से प्रचार-प्रसार नहीं किया। अगर इनका साथ मिला होता तो शायद नतीजों में LJP की हालत बेहतर होती।

JDU की नजर LJP के दलित वोट बैंक पर

बता दे, बिहार में दलित वोट बैंक पर पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान का पकड़ सबसे अधिक था। इस बात का सबूत बीते साल के विधानसभा चुनाव का रिजल्ट है, जिसमें LJP को करीब 25 लाख वोट मिले थे। इसमें सबसे अधिक वोट दलित और महादलित के ही थे। यही बात JDU को हजम नहीं हो रही है। और यह बात जदयू ने भी माना की बीते चुनाव में उनके सीट कम होने की वजह LJP है।

वही पार्टी में बगावत होने के बाद चिराग पासवान ने प्रेस कांफ्रेंस के जरिये सीधे तौर पर JDU के नेताओं पर निशाना साधा है।

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