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Jivitputrika Vrat 2020 : जानें जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व, व्रत नियम और पूजा विधि

  • यह व्रत महिलाएं अपने पुत्र के लंबे जीवन, रोग मुक्त रहने और उनके सुख- समृद्धि के लिए रखती है
  • इस वर्ष जितिया 10 सितंबर, गुरुवार को पड़ा है

News24 Bite

September 9, 2020 11:17 am

Jivitputrika Vrat 2020 Shubh Muhurt : जीवित्पुत्रिका (जीउतिया) व्रत हिन्दू महिलाओं के द्वारा मनाए जाने वाला उत्तर प्रदेश और बिहार का एक प्रमुख पर्व है। यह व्रत महिलाएं अपने पुत्र के लंबे जीवन, रोग मुक्त रहने और उनके सुख- समृद्धि के लिए बड़ी ही श्रद्धा के साथ रखती है। जीउतिया व्रत प्रत्येक वर्ष अश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इसे जिउतिया या जितिया व्रत भी कहा जाता है।

बता दे, इस वर्ष जितिया 10 सितंबर, गुरुवार को पड़ा है। तीन दिन तक मनाया जाने जाने वाला यह व्रत सप्तमी तिथि को नहाय-खाय शुरू होती है। अष्टमी तिथि को महिलाएं बच्चों की समृद्धि और उन्नत के लिए निर्जला व्रत रखती हैं, इसके बाद नवमी तिथि यानी अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है यानी व्रत खोला जाता है। यह व्रत निर्जला (बिना पानी पिए) रखना पड़ता है।

जीउतिया व्रत सुभ मुहूर्त :

जितिया व्रत इस वर्ष 10 सितंबर यानी गुरुवार को पड़ रहा है, व्रत का शुभ मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 5 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 11 सितंबर को 4 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। इस व्रत को पारण के द्वारा तोड़ा जाएगा जिसका शुभ समय 11 सितंबर को दोपहर 12 बजे तक होगा।

आज है नहाय-खाय

जितिया व्रत के पहले दिन यानी (सप्तमी तिथि) नहाए खाए को सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं खाना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से व्रत खंडित हो जाता है तथा इसका बुरा प्रभाव संतान को झेलने पड़ते हैं।

पूजन की विधि

इस व्रत में जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित किया जाता है और फिर पूजा होता है। इसके साथ ही मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाई जाती है। जिसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। पूजन समाप्त होने के बाद जिउतिया व्रत की कथा सुन्ना अनिवार्य होता है। स्त्रियां पुत्र की लंबी आयु, आरोग्य तथा कल्याण की कामना से इस व्रत को करती है। कहते है जो महिलाएं पुरे विधि-विधान से निष्ठापूर्वक कथा सुनकर ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देती है, उन्हें पुत्र सुख व उनकी समृद्धि प्राप्त होती है। इस व्रत में सूर्योदय से पहले खाया पिया जाता है। सूर्योदय के बाद पानी भी नहीं पिया जाता है। इसके साथ ही सूर्योदय को अर्द्ध देने के बाद कुछ खाया या पिया जाता है। वहीं व्रत के आखिरी दिन भात, मरुला की रोटी और नोनी का साग बनाकर खाने की परंपरा है।

तीनों दिन की व्रत विधि

नहाय खाय – नहाय-खाय के साथ जिउतिया व्रत शुरू होता है। जिउतिया व्रत में नहाय खाय की विशेष महत्व होता है। महिलाएं इस दिन सुबह गंगा स्नान (नदी, तालाब या झील) करती हैं। इस दिन सिर्फ एक बार ही सात्विक भोजन करना होता है। नहाय खाय की रात को छत पर जाकर चारों दिशाओं में कुछ खाना रख दिया जाता है।

निर्जला व्रत- इसे खुर जितिया कहा जाता है, यह पूर्ण निर्जला व्रत होता है।

पारण का दिन- यह व्रत का आखिरी दिन होता है, इस दिन दान दिया जाता है।

जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया की आरती

ओम जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन॥ ओम जय कश्यप…
सप्त अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी॥ ओम जय कश्यप

सुर मुनि भूसुर वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥ ओम जय कश्यप…
सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन मोचन, भव-बंधन भारी॥ ओम जय कश्यप.

कमल समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत अति, मनसिज संतापा॥ ओम जय कश्यप…
नेत्र व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥ ओम जय कश्यप

सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥ ओम जय कश्यप

मड़ुआ की रोटी और मछली खाने की परंपरा

बता दे, मिथिला में जिउतिया व्रत से एक दिन पहले सप्तमी यानी नहाय खाय के दिन मड़ुआ की रोटी और मछली खाने की परंपरा है।

जाने क्या है ? सतपुतिया की सब्जी

इस व्रत और पूजा के दौरान झिंगनी/ सतपुतिया की सब्जी भी खाई जाती है, सतपुतिया आमतौर पर शाकाहारी महिलाएं खाती हैं, सतपुतिया उत्तर प्रदेश और बिहार के क्षेत्रों में अधिक होती है।

जाने जिउतिया व्रत की प्रचलित लोक कथा

वैसे तो जिउतिया व्रत को लेकर कई लोक कथाएं प्रचलित है उन्हीं में से एक है चिल और सियारिन कि कथा। इस कथा के अनुसार नर्मदा नदी के पश्चिम में बालुहटा नाम की एक मरुभूमि थी। जहां एक विशाल पाकड़ के पेड़ पर एक चील रहती थी, उसे पेड़ के नीचे एक सियारिन भी रहती थी। दोनों में काफी मित्रता थी। दोनों ने एक बार जितिया व्रत रखने का निश्चय किया। दोनों दिनभर जितिया व्रत निर्जला रहे, किन्तु सियारिन व्रत रहने के बाद भी दिन भर हड्डियां एकत्रित करती रही। इधर चिल ने संयम रखते हुए विधिपूर्वक जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत का पालन किया। जब दोनों संध्या काल में पुनः एकत्र हुए तब सियारिन ने अपनी मांद में हड्डियां को खाना शुरू किया। हड्डियों के खाने के वजह से सियारिन का दांत कटकटा रहा था, चिल ने यह आवाज़ सुनकर इसके बारे में सियारिन से पूछा तब सियारिन ने वृक्ष पर बैठे चिल से कहा कि भूख के मारे करवट बदलने पर मेरी हड्डियां कट कटा रही है। दोनों मरने के बाद मनुष्य योनी में जन्म लिए। सियारिन ने क्षत्रिय राजा के पुत्री कपुरावती के रूप में जन्म लिया और चिल ने एक बड़े नगर व्यापारी के पुत्री शीलवती के रूप में जन्म लिया।

युवा अवस्था होने पर दोनों का विवाह एक ही नगर में हुआ। कपुरावती (सियारिन) उस नगर की रानी बनी और शीलवती (चिल) उस नगर की व्यापारी की वधू। पूर्ण जन्म के जितिया व्रत के प्रभाव से शीलवती को सात पुत्र प्राप्त हुए और कपुरावती को कोई भी पुत्र प्राप्त नहीं हुआ। वह रानी होते हुए भी बांझ थी। कुछ समय बाद शीलवती के सातों पुत्र बड़े हो गए। वे सभी राजा के दरबार में काम करने लगे। कपुरावती के मन में उन्‍हें देख इर्ष्या की भावना आ गयी। उसने राजा से कहकर शीलवती के सभी बेटों के सर कटवा उन्‍हें सात नए बर्तन में रख लाल कपड़े से ढककर शीलवती के पास भिजवा दिया। यह देख भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सर बनाए और सभी के सिर को उसके धड़ से जोड़कर उन पर अमृत छिड़क दिया। इससे उनमें जान आ गई। सातों युवक जिंदा हो गए और घर लौट आए। जो कटे सर रानी ने भेजे थे वे फल बन गए। दूसरी ओर रानी कपुरावती सबको जिंदा देखकर वह सन्न रह गयी और ईर्ष्या, जलन के कारन उसकी एक दिन मौत हो गई।

दूसरी कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता द्रोणाचार्य की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था। सीने में बदले की भावना लिए वह रात के अंधेरे में चुपके से पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे।

अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। लेकिन वें सभी द्रौपदी की पांच संतानें थीं। जिसके बाद अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली। दिव्य मणि निकलने से हुए अतयंत पीड़ा और क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को भी ब्रह्मास्त्र से मार डाला। ऐसे में भगवान कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित कर दिया।

भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। तभी से संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए हर साल जितिया व्रत रखने की परंपरा को निभाया जाता है।

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