एक बार माता पार्वती जी भगवान शंकर से बोलीं- हे प्रभो ! मेरी इच्छा एक बार मृत्युलोक भ्रमण की है? मैं देखना चाहती हूंँ कि वहाँ लोग कैसे रहते हैं, क्या-क्या खाते हैं? वहाँ कैसे-कैसे फल-फूल होते हैं? वहाँ के प्राणी अपना जीवन यापन कैसे करते हैं?
भगवान शंकर बोले- मृत्युलोक में लोगों का जीवन बड़ा ही कष्टमय है। वहाँ जाकर आप भी दु:खी हो जायेंगी। पार्वती जी बोलीं- चाहे कुछ भी हो, एक बार वहाँ चलना चाहिए। भगवान शंकर बोले- अच्छा, तो- आज ही चलिए।
गर्मी का मौसम था। चांदनी रात थी। भगवान शंकर और पार्वती आकाश मार्ग से बड़ी तेजी से नीचे उतर रहे थे। धरती से कुछ ही ऊपर थे कि एक विचित्र सुगंध से माता पार्वती का मन प्रफुल्लित हो गया। बोली- यह कैसी सुगंध आ रही है? शंकर भगवान बोले- आसपास कहीं मीठे- फल पक्के हैं। उसी की सुगंध आ रही है।
पार्वती जी बोलीं- एक फल ले आते, तो मैं भी इसका स्वाद लेती। स्वर्ग में तो तरह- तरह के फल हैं, लेकिन जब हम लोग यहाँ घूमने आए हैं, तो यहाँ का फल भी चखना चाहिए।
भगवान शंकर बोले- हम लोग घूमने आए हैं कि फल खाने? देखिए- वही खेत है जिसमें तरह-तरह के फल लगे हैं। फलों की रखवाली के लिए एक आदमी मचान बनाकर उस पर सोया है। अतः वहाँ जाना ठीक नहीं। पार्वती जी बोली- सोया है तो क्या हुआ। उसे जगा कर एक फल मांग लीजिए। शंकर भगवान- उसे जगाऊँगा कैसे? अगर जागा होगा तो जैसे ही मैं उधर जाऊँगा, वह अपशब्द कहना शुरू करेगा। चोर समझकर डंडा भी चला सकता है। वहाँ जाना ठीक नहीं।
पार्वती जी : आप भगवान हैं, तो वह डंडा कैसे चलाएगा?
शंकर भगवान : वह मुझे भगवान कैसे जानेगा? वह तो मुझे चोर चुहार ही ससमझेगा।
अंत में पार्वती जी के हठ के सामने भगवान शंकर को झूकना पड़ा।
जैसे ही भगवान शंकर खेत के बाँध पर पहुँचे, वैसे ही किसान मचान पर से सोंटा लिए नीचे कूदा और बोला- आओ, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा हूंँ। भगवान शंकर ने जो सोचा था, वही हुआ l बोले- अरे भाई, मैं कोई चोर- चुहार नहीं हूंँ। मैं भगवान शंकर हूंँ। किसान बोला- अच्छा, तो तुम शंकर भगवान हो। शंकर भगवान रात में खेते- खेते घूमते हैं और फल तोड़ते हैं। शंकर भगवान बोले- मैं सचमुच -भगवान शंकर हूंँ। देखो- उसी समय नंदी पर सवार, हाथ में डमरू और त्रिशूल लिए, गले में सर्प लपेटे भगवान शंकर प्रकाश पूंज के साथ विराजमान हुए।
यह देख किसान के होश उड़ गये। काटो तो खून नहीं। वहीं गिरकर बेहोश हो गया। भगवान की कृपा से जब वह होश में आया तो उन्हें प्रणाम करके बोला- प्रभो! मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि आप मेरे खेत में आयेंगे और दर्शन देंगे।
भगवान शंकर बोले- पार्वती जी भी आई हैं। वही फल खाना चाहती हैं। एक फल दो। किसान बोला- लालमी, तरबूज, खरबूज कँकड़ी इत्यादि बहुत से फल है। मैं कौन सा फल दूँ। आप जो फल कहे, जितना कहें तोड़ देता हूंँ।
भगवान शंकर ने कहा : जो तुम्हें अच्छा लगे, सिर्फ एक ही फल दो। किसान ने एक पका हुआ सुंदर तरबूज उन्हें दिया। भगवान शंकर ने कहा- अब तुम जो चाहे मुझ से मांग लो। सीधा -सादा किसान क्या मांगे? उसने कहा- प्रभो! मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि मैं सोया भी रहूं तो लोगों को ऐसा लगे कि मैं जगा हूंँ। रात में चोर फल तोड़ने आता है।
भगवान शंकर ने कहा : एवमस्तु। कहकर भगवान चले गए। अब किसान के कान से लगातार फटफट- फटफट की आवाज आने लगी। ऐसा लगता था मानो पंपिंग सेट चल रहा हो।
अगले दिन बारह बजे रात में तीन चोर फल चुराने के लिए आए। अभी कुछ दूर ही थे कि फटफट- भड-भड की आवाज सुनकर रुक गए। उन लोगों ने विचार किया। अभी वहाँ जाना ठीक नहीं। किसान खेत में पानी पटा रहा है। पंपिंग सेट चालू है।
तीन दिन के बाद चोर आए तो फिर पंपिंग सेट मशीन की आवाज सुनकर लौट गए। फिर चार दिन के बाद आए तो वही आवाज आ रही थी। एक ने कहा अरे मात्र चार- पाँच कट्ठा खेत में यह 10 दिनों से पानी पटा रहा है। लगता है कि दूसरे को ठगने के लिए कोई मशीन चला रहा है। चलो देखा जाए। जब तीनों चोर उसके मचान तक गए, तो देखा कि किसान सो रहा था । उसके कान से आवाज आ रही थी। आपस में विचार करके एक चोर ने उसे मचान पर से खींच कर नीचे गिरा दिया। कहने लगा- तुम दस दिनों से हमें परेशान कर रहे हो। बताओ कि कान में क्या लगाए हो जो पंपिंग सेट की आवाज निकाल रहा है। किसान डर गया, बोला- अरे शंकर भगवान फल खाने आए थे। वही वरदान दिए जिससे यह आवाज लगातार आती रहती है।
चोर बोला : अब हम तुम्हारा इलाज करते हैं। उसका दोनों हाथ बाँध दिया और मूंग का पौधा नोच कर उसके कानों में कोंच दिया। अब आवाज बंद हो गई। चोर बोला- हमारे साथ चलो। किसान ने पूछा कहाँ? चोर बोला- चोरी करने। किसान रोने लगा और बोला- मैं चोर नहीं हूंँ। पकड़ा जाऊँगा तब क्या होगा? चोर बोला तुम बाहर ही रहना। चोरी का सामान ढोना। सभी चले।
एक बड़े जमींदार के घर में तीनों चोर प्रवेश किए और किसान को घोड़शाल मे छिपने को कहा। रात अंधेरी थी। वहाँ घोड़े बंधे थे। किसान ने घोड़े को नहीं देखा। डरा किसान घोड़े के पास ही था। मूंग के घास की महक घोड़े को लगी। एक घोड़ा अपनी जीभ से पकड़ उसे खींच दिया। घास निकलते ही पंपिंग सेट चालू, उससे फटफट- फटफट की आवाज आने लगी। सिपाही ने सोचा- घोड़-सार में पंपिंग सेट कैसे चलने लगा। वह वहाँ जाकर देखा। डरा हुआ किसान वहीं खड़ा था। सिपाही ने पूछा- तुम कौन हो? किसान ने कहा- यह मैं बाद में बताऊँगा। पहले महल में गए उन तीनों चोरों को पकड़ो।
इस प्रकार अन्य सिपाहियों की सहायता से तीनों चोर पकड़े गए।
जमींदार द्वारा पूछे जाने पर चोरों ने कहा- हुजूर हम तीनों चोर हैं किंतु यह किसान निर्दोष है। इसे छोड़ दिया जाए। तीनों चोरों को फांसी की सजा मिली। किसान मुक्त हुआ। मुक्त करने से पहले जमींदार ने किसान से उसके कान से आवाज आने का कारण पूछा था। किसान ने भगवान शंकर द्वारा वरदान देने की कहानी सुनाई थी।
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