गाँव के छोटे- बड़े सभी वहाँ भुआली को अपनी देह दिखाने आ जा रहे थे। सभी को हर मौके पर भुआली की जरुरत पड़ती थी। भुआली भी किसी को न- नहीं कहता था। भुआली के बिना किसी का यज्ञ नहीं हो सकता था। झाड़ू लगाना, पत्तल चलाना, पानी देना, पत्तल फेंकना, अंगेया- बीजे- ये सारे कार्य भुआली के जिम्मे ही आते थे।
कृषि- कार्य में भी पहले लोग भुआली के यहाँ जाते हैं। उसके उपलब्ध न रहने पर ही दूसरे को कहते हैं।
पत्नी के मर जाने पर भुआली बिल्कुल बेसहारा हो गया था। सोचता था कि घर में किसी महिला के बिना शादी का विधि- विधान पूरा कैसे होगा?
यही सोचकर उसने पूनिया की मामी को बुला लाया। यह बात जैसे ही भरदुल साह को मालूम हुई, वे पुनिया की मामी से मिलने आ गए। आंगन में जाकर उससे मजाक करने लगे। इस मामले में वह भी उन्नीस नहीं थी। चुपके से दही और हल्दी घोलकर उनके शरीर पर पटा दी।
अब भरदुल साह भागे। पुनिया की मामी कुछ दूर चहेटने के बाद वापस आ गई। गाँव में उसकी चर्चा कई दिनों तक रही। बारात समय से आ गई थी। बारातियों का स्वागत अच्छा से हुआ। उन्हें समय से भोजन करा दिया गया।
शादी की रस्में पुरी हुईं। विदाई के समय पुनिया को माँ की यादें आने लगीं। जैसे ही माँ का चेहरा उसके सामने आया, वह जोर- जोर से रोने लगी। गाँव की महिलाएँ भी रोने लगीं।
इस दृश्य को भुआली बर्दाश्त नहीं कर सका। उसे अब पत्नी की यादें रुलाने लगीं। वह सोच रहा था, इस समय वह होती, तो बेटी को संभालती। वह बेहोश होकर गिर पड़ा, दृश्य बड़ा ही गमगीन हो गया। उसे पानी का छींटा मारकर होश में लाया गया। रोते-रोते पुनिया का हाल बेहाल था। गाँव की महिलाओं ने उसे डोली में बैठाया।
उसी समय लाउडस्पीकर पर बजने लगा :
बाबा मोरा रहतन रामा,
रहतीन मोरी मईया, से फेरी देतन डोलिया कहाँरवा हो राम।
दोस्तों अगर यह कहानी आपको पसंद आयी है तो शेयर करना ना भूले और फेसबुक पर Comments के माध्यम से अपनी राय दे। (https://www.facebook.com/news24bite/)
" />Hindi Story. आज भुआली के घर काफी चहल-पहल थी। उसकी पुत्री पुनिया की बारात आने वाली थी। दरवाजे पर एक छोटा सा शामियाना तना था। कुछ कुर्सियाँ रखी गई थीं। अगल- बगल के बच्चे उसमें धमाचौकड़ी मचा रहे थे। एक लाउडस्पीकर बज रहा था, जिससे रुक-रुक कर आवाज आ रही थी।
गाँव के छोटे- बड़े सभी वहाँ भुआली को अपनी देह दिखाने आ जा रहे थे। सभी को हर मौके पर भुआली की जरुरत पड़ती थी। भुआली भी किसी को न- नहीं कहता था। भुआली के बिना किसी का यज्ञ नहीं हो सकता था। झाड़ू लगाना, पत्तल चलाना, पानी देना, पत्तल फेंकना, अंगेया- बीजे- ये सारे कार्य भुआली के जिम्मे ही आते थे।
कृषि- कार्य में भी पहले लोग भुआली के यहाँ जाते हैं। उसके उपलब्ध न रहने पर ही दूसरे को कहते हैं।
पत्नी के मर जाने पर भुआली बिल्कुल बेसहारा हो गया था। सोचता था कि घर में किसी महिला के बिना शादी का विधि- विधान पूरा कैसे होगा?
यही सोचकर उसने पूनिया की मामी को बुला लाया। यह बात जैसे ही भरदुल साह को मालूम हुई, वे पुनिया की मामी से मिलने आ गए। आंगन में जाकर उससे मजाक करने लगे। इस मामले में वह भी उन्नीस नहीं थी। चुपके से दही और हल्दी घोलकर उनके शरीर पर पटा दी।
अब भरदुल साह भागे। पुनिया की मामी कुछ दूर चहेटने के बाद वापस आ गई। गाँव में उसकी चर्चा कई दिनों तक रही। बारात समय से आ गई थी। बारातियों का स्वागत अच्छा से हुआ। उन्हें समय से भोजन करा दिया गया।
शादी की रस्में पुरी हुईं। विदाई के समय पुनिया को माँ की यादें आने लगीं। जैसे ही माँ का चेहरा उसके सामने आया, वह जोर- जोर से रोने लगी। गाँव की महिलाएँ भी रोने लगीं।
इस दृश्य को भुआली बर्दाश्त नहीं कर सका। उसे अब पत्नी की यादें रुलाने लगीं। वह सोच रहा था, इस समय वह होती, तो बेटी को संभालती। वह बेहोश होकर गिर पड़ा, दृश्य बड़ा ही गमगीन हो गया। उसे पानी का छींटा मारकर होश में लाया गया। रोते-रोते पुनिया का हाल बेहाल था। गाँव की महिलाओं ने उसे डोली में बैठाया।
उसी समय लाउडस्पीकर पर बजने लगा :
बाबा मोरा रहतन रामा,
रहतीन मोरी मईया, से फेरी देतन डोलिया कहाँरवा हो राम।
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