हिंदी कहानी. एक बार पाँच असमर्थ और अपंग लोग एक स्थान पर इकट्ठे हुए और कहने लगे-“यदि भगवान ने हमें समर्थ बनाया होता तो हम लोगों का बड़ा परमार्थ करते।”
अंधे ने कहा : “यदि मेरी आँखें होतीं तो जहाँ कहीं गलत देखता तो उसे सुधारने में लग जाता।” कुछ ऐसी ही बातें लँगड़े ने भी कहीं, लँगड़े ने कहा : “यदि मेरे पैर होते तो दौड़-दौड़कर लोगों की भलाई करता”। निर्बल व्यक्ति बोला : “यदि मुझमें बल होता तो मैं अत्याचारियों को मार-मारकर ठीक कर देता।” निर्धन ने कहा : “यदि मैं धनी होता तो दीन-दु:खियों के लिए अपना सब कुछ लुटा देता।”
वरुण देव उन सबकी बातें सुन रहे थे। उनकी सेवा-भावनाओं को परखने के लिए उन्होंने अपना आशीर्वाद उनको देकर सबकी इच्छाएँ पूर्ण कर दीं, परंतु परिस्थिति के बदलते ही उन सबके विचार भी बदल गए। अंधे को आँखें मिलते ही वह सुंदर वस्तुएँ देखने में लग गया एवं लोक-सुधार की बात को भूल गया। लँगड़ा भी लोगों की भलाई करने की बात को भूलकर सैर-सपाटे के लिए निकल पड़ा। निर्धन धनी बनते ही भौतिक सुविधा-साधन जुटाने में लग गया और दान इत्यादि की बात को भुला बैठा। निर्बल ने बलवान होने के बाद दूसरों को आतंकित करना प्रारंभ कर दिया। तथा मूर्ख ने विद्वान बनकर दूसरों को मूर्ख बनाना प्रारंभ कर दिया।
बहुत दिनों बाद जब वरुण देव उनकी भावनाओं को परखने लौटे तो देखा कि वे सब अपनी-अपनी स्वार्थसिद्धि में लगे हैं एवं पुण्य-परमार्थ की बात को भुला बैठे हैं। वरुण देव ने खिन्न होकर अपने वरदान वापस ले लिए। वे सब फिर पहले जैसे हो गए। अब उन्हें अपनी पुरानी प्रतिज्ञाएँ याद आईं, तो पछताने लगे। इस कहानी का उद्देश्य यह है कि हमें भी अपने संबंध में विचार करना चाहिए कि हम भगवान की दी हुई सिद्धियों का सदुपयोग कर रहे हैं या नहीं। दुरुपयोग करने पर एक दिन हमसे ये छिन भी सकती हैं।