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Hindi Moral Story : ‘ए गाँव में बची न कोई’

  • प्रस्तुति - ध्रुव तिवारी

News24 Bite

August 30, 2020 7:24 am

Hindi Story. प्राचीन काल की बात है। एक गाँव में कुछ बनिए रहते थे। उन्हीं में समझु साह का परिवार भी था। यह परिवार बहुत ही निर्धन था। समझु साह ने महाजन से दस रुपये लेकर व्यापार शुरू किया। अथक परिश्रम करने के कारण व्यापार में लाभ होने लगा। साल लगते-लगते व्यापार बहुत बढ़ गया। दो साल में सेठ कहलाने लगे। पक्का मकान बन गया। जब व्यापार में उन्नति हुई तो उन्होंने नाम में भी परिवर्तन किया, अब वे साह से गुप्ता बन गए।

अपने जीवन में उन्होंने अथाह धन अर्जित किया। अब उनकी अवस्था ढलने लगी थी। एक ही पुत्र था। उन्होंने सोचा, इसकी परीक्षा लेनी चाहिए कि मेरे द्वारा अर्जित धन को यह सुरक्षित रखेगा कि डुबाएगा। गुप्ता जी ने अपने पुत्र को पाँच सौ रुपये व्यापार के लिए दिए। उस समय का पाँच सौ, अभी के पाँच लाख के बराबर था।

पुत्र मूर्ख निकला। उसने पाँच सौ रुपये के हर्रे- बहेरा खरीद कर दस गाड़ियों पर लाद लाया। गुप्ता जी ने पूछा- क्या लाए हो? पुत्र ने जवाब दिया- हर्रे -बहेरा। गुप्ता जी ने माथा पीटना शुरू किया। कुछ देर बाद, एक सोंटा (लकड़ी का डंडा) लेकर उसे लगे चहेटने।

जब गुस्सा शांत हुआ, तो उन्होंने पुत्र से कहा। तुमने तो अपनी मूर्खता से मेरा धन गँवा दिया। हर्रे – बहेरा का उपयोग तो दवा के रूप में होता है । कोई दो खरीदता है, कोई चार, ऐसे तो सैकड़ों साल में यह नही बिकेगा ।

आदमी को अगर बुद्धि हो तो वह बिगड़े हुए काम को भी बना लेता है। मैं इसे भी दस दिनों में बेचकर मुनाफा कमा लूंगा।
गाँव के पूरब एक तालाब था। वहाँ दो पीपल के वृक्ष थे। उन्होंने पुत्र से कहा- एक वृक्ष पर तुम चढ़ जाना और दूसरे पर मैं। मुँह को दोनों हाथों से ढककर तुम कहना- कू, फिर मैं बोलूंगा- कू, ऐसे- पाँच सात बार करना है। गाँव के लोग डर जायेंगे। समझेंगे- कोई- भूत- प्रेत आ गया है। अब वे लोग कान लगाकर सुनेंगे। तब तुम कहना- ए गाँव में बची न कोई। तब मैं कहूँगा बचबो करी उहे जेकरा घर में पाँच किलो हर्रे -बहेरा होई। इसे भी पाँच बार कहना है। कल एक बाजार में तुम जाना, एक बाजार में मैं जाऊँगा। गाड़ी पर लादकर माल ले जाना।

गाँव के लोगों ने समझा कोई नया प्रेत आ गया है। वह हर्रे- बहेरा से ही डरता है। डर के मारे सभी का हाल खराब था। अगल- बगल के गाँव वाले भी यह सुनकर डर गए। अब जिसे पैसे थे, वे पैसे से, जिसे पैसे नहीं थे, वे अन्न बेचकर या कर्ज लेकर पाँच- पाँच किलो हर्रे- बहेरा खरीद लिए। इस प्रकार करीब दस दिनों में ही सारा माल बिक गया। मुनाफा भी खूब हुआ।

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