गरमी में हम खूब नहाते
गरमी से पसीना गिरते।।
सुबह-सुबह की हवा सुहानी
दोपहर की हवा करती परेशानी।
सायं प्रातः सुन्दर अलवेवा।
मस्ती का आलम साथ रहेला।।
बिजली आ गई कूलर चली
कूलर से हम ठंड पाते,
रोज सबेरे-सुबह उठ जाते
सुंदर -सुंदर हवा भाते।।
पानी से हम खूब नहाते।
गरमी को हम दूर भागते।
बच्चे बूढ़े होते परेशान
दोपहर करते खूब स्न्नान।।
गरमी में मक्खी-मच्छर भिनकती
सर्दी में ठिठुर-ठिठुर कर जाती।
ठिठुर-ठिठुर कर भिनक नहीं पाती
गरमी में आजादी से पाती,
आजादी से लोगो को कथा सुनाती।।
मक्खी मच्छर का है, वेला
सुबह-सुबह लगता अलबेला
गरमी का आलम हर समय रहेला ।।
मक्खी मच्छर दशा कराती
चाटी-चाटी खूब खाती।
चाटी-चाटी खाकर तुरंत उड़ जाती,
फिर वह तुरंत समझ पाती,
कैसा है? गरमी का खेला,
दोपहर गरमी खूब होखेला ।।
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