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Bengal Assembly Election 2021: मोदी, शाह और नड्डा की 120 रैलियां बदलेगी चुनावी फिजा!

  • मतुआ सम्प्रदाय का मसला पश्चिम बंगाल की चुनावी राजनीति में बहुत अहम रहने की संभावना है।
  • संजीव सुमन की रिपोर्ट

News24 Bite

March 8, 2021 3:46 pm

West Bengal. आगामी बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर BJP पूरी जोड़-आजमाइस कर रही है। ऐसा लग रहा कि क्रांति बिल्कुल कोने पर है। उम्मीदों के ज्वार ठाठें मार रहा है। कहने का मतलब है कि भाजपा ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव जितने के लिए पूरा जोर लगा दिया है।

भाजपा की अब पूरी पलटन चुनावी जंग में उतरने वाली है। भाजपा के मुख्य नेता पीएम नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा जैसे महारथी 120 रैलियां करने की तैयारी में है। भाजपा की उम्मीदें पीएम नरेन्द्र मोदी पर सबसे ज्यादा टिकी हुई है इसलिए उनकी अधिक से अधिक सभाएं होंने जा रही है, ऐसा माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री ने 20 रैलियों के लिए अपनी सहमति प्रदान कर दी है।

वहीं दूसरे मुख्य नेता गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की पचास-पचास रैलियों की रूपरेखा तैयार की गई है। जबकि भाजपा के उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री और फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ से भी भाजपा ने बहुत आस लगा रखी है। अन्य वरिष्ठ नेताओं की करीब 500 चुनावी रैलियों की योजना है। ममता बनर्जी जैसी मजबूत जनाधार वाली नेता से मुकाबले में भाजपा कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहती है।जिसके लिए यह तैयारी की जा रही है।

PM नरेन्द्र मोदी की रणनीति

चुनाव की घोषणा से पहले ही नरेन्द्र मोदी ने पश्चिम बंगाल में चुनावी समां बांध रखें हुए है। नरेन्द्र मोदी अपनी लोकप्रियता भुनाने के साथ-साथ सामाजिक समीकरणों पर भी ध्यान रखें हुए हैं।इसी बीच वे 26 मार्च को बांग्लादेश की यात्रा पर जा रहे हैं। इस यात्रा के दौरान वे मतुआ सम्प्रदाय के संस्थापक हरिचंद्र ठाकुर की जन्मस्थली का भी दर्शन करने जाएंगे।बंगाल में अनुसूचित जाति की आबादी करीब 1 करोड़ 84 लाख है,इनमें से आधे लोग मतुआ सम्प्रदाय से जुड़े हुए लोग हैं।

मतुआ सम्प्रदाय का मसला पश्चिम बंगाल की चुनावी राजनीति में बहुत अहम रहने की संभावना है। बता दें कि मतुआ सम्प्रदाय एक धार्मिक पंथ है जिसकी शुरुआत समाजसुधारक हरिचंद्र ठाकुर ने 1860 में की थी। मतुआ सम्प्रदाय से जुड़े लोग हरिचंद्र ठाकुर को भगवान का अवतार मानते आ रहे हैं।उनका जन्म संयुक्त बंगाल (बांग्लादेश) के ओरकांडी में हुआ था। जब 1947 में भारत का विभाजन हुआ तो मतुआ सम्प्रदाय के लोगों की अधिसंख्य आबादी पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में पड़ गयी थी, विभाजन के बाद हरिचंद्र ठाकुर के परिजन पश्चिम बंगाल में आकर बस गए।उनके साथ मतुआ लोगों की एक बड़ी आबादी भी पश्चिम बंगाल में आ गयी,जो यहीं की होकर रह गई।ऐसे में मतुआ लोगों की नागरिकता का एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ था,जिसका समाधान अब तक लटका हुआ है।अब यह सवाल पश्चिम बंगाल की राजनीति का एक बड़ा मुद्दा बन गया है।

मतुआ वोट बैंक पर नजर

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मतुआ पंथ के संस्थापक हरिचंद्र ठाकुर के वंशज (मतुआ माता के पोते) शांतनु ठाकुर को वनगांव से टिकट दिया था जहां से वे विजयी हुए।अनुसूचित जाति की एक बड़ी आबादी मतुआ सम्प्रदाय से जुड़ी हुई है,इसलिए नरेन्द्र मोदी ने विधानसभा चुनाव में इस समुदाय का जनसमर्थन हासिल करने के लिए इस विशेष योजना को बनायी है।

बता दें कि बंगाल में करीब 40 विधानसभा सीटों पर मतुआ वोटरों की संख्या निर्णायक होती है,वे जिसकी तरफ झुकेंगे उसका पलड़ा भारी हो जाता है। 2010 में मतुआ माता वीणापाणि देवी ने ममता बनर्जी को समुदाय का संरक्षक घोषित कर दिया था, जिसका नतीजा ये रहा कि 2011 में उन्होंने वामपंथियों की 34 साल पुरानी सरकार उखाड़ फेंकी थी।अब नरेन्द्र मोदी इनको अपने पाले में करने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। इन सब से एक बात स्पष्ट है कि भाजपा इस बार बंगाल फतह के लिए पूरी सिद्दत से लग गई है।देखना दिलचस्प होगा कि बंगाल परिणाम क्या गुल खिलाता है।

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