Afghan-Taliban News. अफगानिस्तान पर तालिबान (Taliban) का कब्जा हो गया है। यानी अफगानिस्तान अब इस्लामिक अमीरात बन चुका है। मौलवी हिब्तुल्लाह अखुंदजादा यहां का “अमीर अल मोमिनीन” घोषित हुआ है। बता दे, मुस्लिम देशों में शासकों को खिताब के रूप में “अमीर अल मोमिनीन” उपयोग किया जाता है।
जानकारी के लिए बात दे, तालिबान ने रविवार को राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया था, जो सरकार के नियंत्रण वाला आखिरी प्रमुख शहर था। जिसके बाद अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए (Taliban in Kabul) थे।
वर्तमान समय में तालिबान के कब्जे के बाद काबुल में अफरातफरी का माहौल है। काबुल एयरपोर्ट पर देश छोड़कर जाने वालों की जबरदस्त भीड़ है। यहां के बिगड़ते हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां की बेकाबू भीड़ पर काबू पाने के लिए गोलियां तक चलाई गई हैं जिसमें कुछ लोगों की मौत तक होने की खबर है। तालिबान के यहां पर कदम रखने के बाद से लोगों में अपनी जान बचाकर देश छोड़कर जाने की होड़ लगी हुई है।
हिब्तुल्लाह अखुंदजादा के अलावा मुल्ला अब्दुल गनी बरादर, मुल्ला मोहम्मद याकूब, सिराजुद्दीन हक्कानी और मुल्ला अब्दुल हकीम को अहम जिम्मेदारी सौपने की जानकारी सामने आ रही है। गौरतलब है कि इनमे से कुछ 1996 से 2001 तक चली तालिबान सरकार में शामिल थे, तो कुछ ने अमेरिका के खिलाफ 20 साल चली जंग में अहम भूमिका निभाई।
ये चलाएंगे तालिबान को…
मौलवी हिब्तुल्लाह अखुंदजादाः फतवों का मास्टर
अरबी भाषा में हिब्तुल्लाह का मतलब होता है ईश्वर का तोहफा। लेकिन अपने नाम के ठीक उलट हिब्तुल्लाह अखुंदजादा ऐसा क्रूर कमांडर है, अवैध संबंध रखने वालों की हत्या करवा देता है तथा चोरी करने वालों के हाथ काटने की सजा देने के लिए जाना जाता है। 1961 में अफगानिस्तान के कंधार प्रांत के पंजवई जिले में पैदा हुआ हिब्तुल्लाह अखुंदजादा नूरजई कबीले से ताल्लुक रखता है। उसके पिता मुल्ला मोहम्मद अखुंद एक धार्मिक स्कॉलर थे। वो गांव की मस्जिद के इमाम थे। 1996 में जब तालिबान में काबुल पर कब्जा जमाया उस वक्त अखुंदजादा को फराह प्रांत के धार्मिक विभाग की जिम्मेदारी मिली।
बाद में वो कंधार चला गया और एक मदरसे का मौलवी बन गया। ये मदरसा तालिबान फाउंडर मुल्ला उमर चलाता था जिसमें 1 लाख से ज्यादा स्टूडेंट पढ़ते थे। हिब्तुल्लाह अखुंदजादा इस्लामिक अमीरात अफगानिस्तान में शरिया अदालत का चीफ जस्टिस भी रहा। मुल्ला मंसूर की मौत के बाद 25 मई 2016 को हिब्तुल्लाह अखुंदजादा को तालिबान की कमान सौंपी गई। तब से वही इस समूह की टॉप अथॉरिटी है।
मुल्ला अब्दुल गनी बरादरः तालिबान का को-फाउंडर
मुल्ला अब्दुल गनी बरादर उन चार लोगों में से एक है जिन्होंने तालिबान का गठन किया था। वो तालिबान के फाउंडर मुल्ला उमर का डिप्टी था। 2001 में अमेरिकी हमले के वक्त वो देश का रक्षामंत्री था। 2010 में अमेरिका और पाकिस्ता ने एक ऑपरेशन में बरादर को गिरफ्तार कर लिया। उस वक्त शांति वार्ता के लिए अफगानिस्तान सरकार बरादर की रिहाई की मांग करती थी। सितंबर 2013 में उसे रिहा कर दिया गया।
2018 में जब तालिबान ने कतर के दोहा में अपना राजनीतिक दफ्तर खोला। वहां अमेरिका से शांति वार्ता के लिए जाने वाले लोगों में मुल्ला अब्दुल गनी बरादर प्रमुख था। उसने हमेशा अमेरिका के साथ बातचीत का समर्थन किया है। इंटरपोल के मुताबिक मुल्ला बरादर का जन्म उरूज्गान प्रांत के देहरावुड जिले के वीटमाक गांव में 1968 में हुआ था। माना जाता है कि उनका संबंध दुर्रानी कबीले से है। पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई भी दुर्रानी ही हैं।
मुल्ला मोहम्मद याकूबः तालिबान के फाउंडर का बेटा
तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर की पाकिस्तान में TB की वजह से मौत हो गई। इसके बाद माना जाने लगा कि तालिबान में मुल्ला उमर के परिवार का दखल खत्म हो जाएगा। 2016 में मुल्ला उमर का बेटा मुल्ला मोहम्मद याकूब सामने आया। उसने अखुंदजादा को तालिबान चीफ बनाए जाने का समर्थन किया और फिर गायब हो गया।
इस साल 29 फरवरी को अमेरिका और तालिबान के समझौते के 3 महीने बाद मोहम्मद याकूब का नाम चर्चा में आया। तालिबान की रहबरी शूरा ने मोहम्मद याकूब को मिलिट्री विंग का कमांडर नियुक्त किया था। मोहम्मद याकूब अब कमांडर मुल्ला याकूब बन चुका है।
सिराजुद्दीन हक्कानीः आत्मघाती हमलों का मास्टमाइंड
सिराजुद्दीन हक्कानी मुजाहिदीन कमांडर जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा है। वो अपने पिता के बनाए हक्कानी नेटवर्क को चलाता है। ये नेटवर्क पाकिस्तान सीमा पर तालिबान के फाइनेंशियल और मिलिट्री प्रॉपर्टी की देखरेख करता है। कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि हक्कानी ने ही अफगानिस्तान में आत्मघाती हमलों की शुरुआत की थी।
हक्कानी नेटवर्क को अफगानिस्तान में कई हाई-प्रोफाइल हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। उसने तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई की हत्या का प्रयास भी किया था। इसके अलावा हक्कानी नेटवर्क ने भारतीय दूतावास पर भी आत्मघाती हमला किया था।
मुल्ला अब्दुल हकीमः शरीयत का जानकार और चीफ जस्टिस
अब्दुल हकीम हक्कानी तालिबान के शांति वार्ता टीम का एक सदस्य है। तालिबान के शासन के दौरान मुख्य न्यायधीश रहा धार्मिक स्कॉलर्स की पावरफुल परिषद का प्रमुख है। ऐसा माना जाता है कि तालिबान सरगना हिबतुल्लाह अखुंदजादा अब्दुल हकीम हक्कानी पर सबसे ज्यादा भरोसा करता है।