देश में कोरोना की दूसरी लहर में अलग-अलग राज्यों के गांवों में हालात एक जैसे हैं। डॉक्टर कम हैं। टेस्टिंग या तो हो नहीं रही या लोग करवा नहीं रहे। तबीयत बिगड़ जाए तो लोग झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे ज्यादा हैं। सर्दी-खांसी से जूझ रहे ज्यादातर लोग काढ़ा पीकर और गिलोय खाकर खुद ही अपना इलाज कर ले रहे हैं। या कोरोना को टायफाइड समझकर झोपड़ियों में अपना इलाज करा रहे हैं।
न्यूज़ 24 बाईट से बातचीत के दौरान ग्रामीणों ने बताया कि : “जिला अस्पताल में तो बेड ही नहीं मिलता। बेड मिल भी जाए तो ऑक्सीजन की कमी या डॉकटर्स की लापरवाही से मरीजों की मौत हो जा रही है। उससे तो अच्छा है कि हम गावं में ही डॉक्टर्स से इलाज करवा ले, यहां तो फ़ीस भी कम लगता है।
गांव में उप स्वास्थ्य केंद्र है, लेकिन डॉक्टर नहीं हैं।
बता दे, कई ऐसे गावं है जहां उप स्वास्थ्य केंद्र तो है लेकिन डॉक्टर्स नहीं है। मजबूरन लोगो को झोलाछाप डॉक्टरों और काढ़े, गिलोय के भरोसे रहना पड़ रहा है। गांवों के लोगों की सेहत सरकारी तंत्र के भरोसे कम और झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे ज्यादा है। गांव के लोगों के पास झोलाछाप डॉक्टरों की मदद लेने के सिवाय कोई और दूसरा चारा नहीं है। आखिर इसके पीछे कौन जिम्मेदार है सिस्टम या सरकार आप अपनी राय दे।