संजीव सुमन की कलम से. वर्ष 2020 कोरोना वायरस के खिलाफ जंग लड़ते-लड़ते ही बीत गया, लेकिन इस महामारी के बावजूद देश नहीं रुका। सड़क से लेकर संसद तक राजनीति चलती रही और अब जब ये साल खत्म होने को है तो देश का सियासी नक्शा 2019 की तुलना में काफी बदल चुका है। साल 2020 का आगाज नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के आंदोलन के साथ शुरू हुआ तो अब जब यह साल समाप्ति की ओर हैं तो ऐसा लगता है कि कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के साथ इसकी समाप्ति हो रही है।
2020 की शुरुआत दिल्ली में विधानसभा चुनावों की आहट से शुरू हुई थी और अब इस साल की विदाई ऐसा लगता हैं पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के आगाज के साथ समाप्त हो रहा हैं, क्योंकि सभी पार्टियों की आपसी वाकयुद्ध इसी ओर इशारा कर रही है। इस साल भी यह देखने को मिल रहा है कि विपक्ष पहले की तरह ही इस साल भी पूरी तरह बिखरा हुआ नजर आया, तो केन्द्र में सत्तासीन बीजेपी नीत एनडीए में शामिल सहयोगी दलों में से कुछ साथ छोड़ते दिखें।
कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से शुरू हुआ कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन इस साल और भी जारी रहा, यहाँ तक कि कुछ राज्यों में आई सत्ता भी अपनी गलतियों से खो दिए तो कहीं बड़ी मुश्किल से अपनी सत्ता बचा पाए। कुल मिलाकर कांग्रेस पार्टी आपसी गुटबाजी से इस पूरे साल जूझती रही, बल्कि बगावत भी खुलकर देखने को मिली जिसके चलते मध्य प्रदेश की सत्ता भी कांग्रेस को गंवानी पड़ी। इसके अलावे राजस्थान में गहलोत सरकार किसी तरह से बच सकी है। बीजेपी को साल की शुरुआत में ही अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष मिला जिसके खाते में बिहार जैसे राज्य की जीत दर्ज हुई है और यह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए सबसे बड़ी जीत का आगाज माना जा सकता है। यहाँ तक की लोकल चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन भी अव्वल रहा। दूसरी ओर, देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के बाद भी कांग्रेस अपना पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं तलाश कर सकी है और अंदरूनी गुटबाजी भी चरम पें है।
इस साल देश की सियासी तस्वीर यह रही
साल 2020 की शुरुआत दिल्ली के विधानसभा चुनाव से शुरू हुई, जहां आम आदमी पार्टी के सियासी वर्चस्व के आगे बीजेपी का भगवा रंग फिर से एक बार फीका रहा।दिल्ली में फरवरी 2020 में विधानसभा चुनाव हुए और अरविंद केजरीवाल ने 70 में से 63 सीटें जीतकर सत्ता की हैट्रिक लगा दी और बीजेपी का दिल्ली फतह का सपना पूरा नहीं हो पाया। दिल्ली की सियासी बाजी भले ही बीजेपी न जीत सकी हो, पर मध्य प्रदेश की 2018 में हारी बाजी को 2020 मार्च में वह अपने नाम करने में कामयाब रही। कांग्रेस पार्टी के सबसे दिग्गज युवा चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों की बगावत के चलते कांग्रेस के हाथों से एमपी की सत्ता छिन गई और एक बार फिर शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी चौथी बार सरकार बनाने में कामयाब हो गई।
कोरोना संक्रमण के बीच बिहार में विधानसभा चुनाव संपन्न कराए गए जो राजनीतिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण रहे। 15 सालों से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार के सामने आरजेडी नेता तेजस्वी यादव का सियासी दम बिहार ने ही नहीं बल्कि देश भर ने बड़ी तन्मयता से देखा और अक्टूबर 2020 के पहले सप्ताह तक बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की एकतरफा जीत के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन आरजेडी प्रमुख लालू यादव की अनुपस्थिति में तेजस्वी ने धुआंधार चुनाव प्रचार किया और चुनाव का एजेंडा ऐसा सेट किया कि पूरा माहौल बदल गया और चुनाव दिलचस्प हो गए,साथ ही लड़ाई एकतरफ़ा न होकर बराबरी का हो गया। चुनाव के आखिरी नतीजें तक ऐसा दिखाई भी दिया।
NDA को बहुमत से सिर्फ दो ज्यादा सीटें मिलीं
हालांकि, नीतीश के खिलाफ सत्ताविरोधी लहर को जीत में तब्दील करने का काम बीजेपी ने किया और बिहार विधानसभा चुनाव में कुल 243 सीटों में से NDA को बहुमत से सिर्फ दो ज्यादा 125 सीटें मिलीं, जिसके साथ ही सत्ता बरकरार रही। आरजेडी की अगुवाई वाले महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं। यही नहीं बीजेपी बिहार में पहली बार जेडीयू से बड़ी पार्टी बनकर उभरी, इस चुनाव के साथ ही गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित तमाम राज्यों में हुए उपचुनाव में भी बीजेपी को शानदार कामयाबी मिली और उनकी ताकत पहले की अपेक्षा और ज्यादा बढ़ गई। यहाँ तक कि संसद में भी दिखा बीजेपी का दम दिखा।
राज्यसभा में कांग्रेस की संख्या घटकर 37 पहुंच गई
लोकसभा में बीजेपी अपने दम पर बहमुत में है, लेकिन राज्यसभा के इतिहास में पहली बार एनडीए का आंकड़ा न सिर्फ सौ के पार हुआ बल्कि बहुमत के करीब पहुंच गया हैं। ऐसा आजाद भारत में गैर-कांग्रेसी पार्टी ने पहली बार करती दिखाई दे रही है। बीजेपी पहली बार राज्यसभा में इतनी ताकतवर बननें के करीब पहुँची है। राज्यसभा में कुल 245 सदस्य हैं, जिनमें से एनडीए के पास 104 सदस्य हैं, जिसमें बीजेपी के सबसे ज्यादा 93 सदस्य हैं जबकि कांग्रेस की संख्या घटकर 37 पहुंच गई है। उच्च सदन में एनडीए के मजबूत होंने का ही नतीजा है कि मोदी सरकार अपना हर बिल पास कराने में कामयाब हो रही है। विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद मोदी सरकार कृषि क्षेत्र और श्रमिकों से जुड़े हुए अहम कानूनों को कोरोना काल में पास कराने में कामयाब रही है और विपक्ष के विरोध के बावजूद बिल पास हो रहे हैं।
कोरोना के बावजूद सड़क पर साल भर आंदोलन
साल 2020 का आगाज हुआ तो देश भर में नागरिकता कानून को लेकर विरोध बड़े पैमानें पर चल रहे थे। दिल्ली का शाहीन बाग सीएए विरोध के आंदोलन का एक मॉडल बनकर उभर गया था और यह आन्दोलन आजाद भारत में सबसे बड़े दिनों तक चला,इसके बाद इसकी आँच दिल्ली सहित देश के दूसरे हिस्सों में भी फैल गया और लोग सड़क पर उतरकर आंदोलन करते दिखाई दे रहे थे। अब जब साल खत्म हो रहा है तो सड़कों पर किसान आंदोलन चल रहा है।अक्टूबर के अंत में पंजाब में शुरू हुआ किसान आंदोलन 25 नवंबर को दिल्ली की चौखट पर पहुंच गया जहां उसने डेरा डाल दिया है और इसकी अभी खत्म होंने की कोई संभावना दिखाई नहीं पड़ रही है।
मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस सालभर जूझती रही
एक के बाद एक चुनावों में लगातार निराशाजनक प्रदर्शन के बीच कांग्रेस को अपने नेताओं और विधायक की बगावत को भी झेलना पड़ा है। मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों ने बगावत की राह पकड़ी तो कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई और बहुत सालों बाद मिली सत्ता अपनों की बगावट में खोना पड़ा।इसके अलावा दूसरा झटका तब लगा जब राजस्थान की गहलोत सरकार के खिलाफ सचिन पायलट ने भी अपने समर्थक विधायकों के साथ बागी रुख अपना लिया जिसके चलते राज्य में सियासी संकट गहरा गया था, लेकिन शीर्ष नेतृत्व के दखल के बाद किसी तरह सत्ता बरकरार रखने में कामयाब हो सकें।इन सब के बीच कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व को भी अपने नेताओं के असंतोष का सामना करना पड़ा. अगस्त 2020 में गुलाम नबी आजाद समेत कांग्रेस के 23 नेताओं का एक पत्र सामने आया था, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सामने संगठननात्मक चुनाव समेत तमाम मांगें उठाई गईं थी,जिसके बाद पार्टी में हड़कंप मच गया था।सोनिया गांधी ने हाल ही में कुछ असंतुष्ट नेताओं के साथ मुलाकात की थी और ऐसी खबर निकलकर सामने आ रही है कि असंतुष्ट नेताओं को मनाने में कुछ हद तक कामयाब हो हो गई हैं। इस साल एक और बात देखने को मिली कि क्षत्रपों के दुर्ग में बीजेपी की दस्तक भी बहुत धमाकेदार हुई है।यह भी देखने को मिला जहाँ बीजेपी का कोई नामोनिशान नहीं था,साल 2020 में बीजेपी के लिए वो भी काफी बेहतर रहा है। बीजेपी ने बिहार चुनाव ही नहीं जीता हैं, बल्कि देश के अलग-अलग राज्यों में हुए निकाय और पंचायत चुनाव के जरिए जबरदस्त रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और धमाकेदार तरीके से जीत दर्ज की।भारत में बीजेपी का सियासी आधार बढ़ा है,उसने अपनी ताकत हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में दूसरे नंबर की पार्टी बनकर दिखाई भी और मजबूती के साथ उभरी भी है। इसके अलावा केरल के पंचायत चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन पिछली बार से बेहतर रहा है, वहाँ भी उपस्थिति दर्ज कराई।
बीजेपी नंबर वन पार्टी बनकर उभरी है
जम्मू-कश्मीर के डीडीसी चुनाव में बीजेपी नंबर वन पार्टी बनकर उभरी है और 74 सीटें जीतने में कामयाब रही है, इसी के साथ घाटी में भी मजबूती से आगे बढ़ रही है। राजस्थान में कांग्रेस के सत्ता में रहते हुए भी बीजेपी पंचायत चुनाव जीतने में कामयाब रही जो आगे आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अच्छा आगाज माना जाएगा। बंगाल में जिस तरह से टीएमसी के विधायकों ने बीजेपी का दामन थामा है, उससे वहां भी सत्ता परिवर्तन की अटकलें लगने लगी हैं और मुख्य मुकाबला में बीजेपी ही है। वहाँ भी कुछ भी हो सकता है।