Patna. बिहार में नीतीश कैबिनेट का विस्तार हो चुका है। कैबिनेट विस्तार में बीजेपी कोटे से कुल 9 मंत्री शामिल हुए जबकि जेडीयू के कोटे से आठ मंत्रियों को जगह मिली है।
इनमें एक निर्दलीय सुमित सिंह भी मंत्री बनाए गए हैं। मंत्रिमंडल विस्तार में जातीय समीकरण क्या है इसे लेकर सब की उत्सुकता बनी हुई है। तो चलिए उसी की खोज करते हैं। कैबिनेट में जिन चेहरों को शामिल किया गया उनमें सबसे ज्यादा राजपूत जाति से आने वाले नेता शामिल है। इसके अलावे कुशवाहा समाज के दो नेताओं को कैबिनेट में जगह दी गई है। मुस्लिम समाज से दो और दो ब्राह्मणों को भी कैबिनेट में जगह दी गई है। कुर्मी समाज से एक और मल्लाह जाति से भी एक मंत्री बनाए गए हैं। वैश्य समाज से भी दो मंत्रियों को कैबिनेट में आज शामिल किया गया।
जबकि एक दलित और एक महादलित समाज के मंत्री भी शपथ लिए। नीतीश कैबिनेट में राजपूत जाति से आने वाले सुभाष सिंह को मंत्री बनाया गया है, जबकि मुस्लिम समाज से शाहनवाज हुसैन और मोहम्मद जमा खान, ब्राह्मण तबके से आलोक रंजन और संजय झा, कुशवाहा समाज से सम्राट चौधरी और जयंत राज मंत्री पद की शपथ लिए। वैश्य समाज से प्रमोद कुमार और नारायण प्रसाद मंत्री पद की शपथ लिए हैं।
महादलित तबके से आने वाले पूर्व सांसद जनक चमार ने भी मंत्री पद का शपथ लिया, उन्हें एमएलसी बनाया गया है।
इसके अलावा दलित तबके से आने वाले बिहार के पूर्व डीजी सुनील कुमार मंत्री पद की शपथ लिए हैं। नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले श्रवण कुमार कुर्मी समाज से आते हैं, उन्होंने भी मंत्री पद का शपथ लिया।
कायस्थ समाज से आने वाले पटना के बांकीपुर से विधायक नितिन नवीन भी मंत्री पद की शपथ लिए और पूर्व मंत्री मदन सहनी जो मल्लाह जाति से आते हैं उन्हें भी मंत्री बनाया गया हैं।
आज होने वाले कैबिनेट विस्तार में भूमिहार जाति से किसी भी चेहरे को शामिल नहीं किया गया है। नीतीश कैबिनेट में भूमिहार समाज से पहले ही दो चेहरे शामिल हैं, विजय कुमार चौधरी और जिवेश मिश्रा को शपथ पहली बार में दिला दी गई थी। बीजेपी ने भूमिहार समाज से आने वाले विजय कुमार सिन्हा को विधानसभा अध्यक्ष भी बनाया है।
जानिए मंत्रियों के नाम और उनकी जाति :
भाजपा से बनने वाले मंत्रियों के नाम
जदयू के मंत्रियों के नाम और जाती
इससे पहले नीतीश कुमार ने 14 मंत्रियों के साथ पिछले साल 16 नवंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
इस तरह से इस बार के कैबिनेट विस्तार में भूमिहार जाति को छोड़कर बाकी जातियों पर फोकस किया गया।