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जेल से MLA का चुनाव जीतने वाला पहला गैंगेस्टर : Hari Shankar Tiwari Biography

  • जेल से MLA का चुनाव जीतने वाला पहला बाहुबली
  • पूर्वाचल में दिया जाना वाला हर ठेका तिवारी को ही मिलता था

News24 Bite

March 4, 2022 8:01 am

Hari Shankar Tiwari Biography/Gorakhpur. यूपी का वह बाहुबली आका जिसके गुर्गे श्री प्रकाश शुक्ला जैसे गैंगेस्टर रहे…….

आज हम बात कर रहे है पूर्वांचल के क्राइम किंग हरिशंकर तिवारी की …. जी हाँ

जब बात होती है गोरखपुर के सबसे बड़े बाहुबली और गैंगेस्टर की तो सबसे पहले और सबसे ऊपर नाम आता हरिशंकर तिवारी की। हरिशंकर तिवारी ने ही राजनीति में अपराधीकरण की शुरुआत की और फिर उसे स्थापित किया। एक दौर में मोस्ट वांटेड रहे हरिशंकर तिवारी ने ही माफिया गिरोहों के सरगनाओं को सत्ता की राह दिखाई थी, जी हाँ ये वही हरिशंकर तिवारी है जिसने यूपी की पॉलटिक्स करने वालों को सिखाया कि कैसे जरायम की दुनिया से नाता रखते हुए भी कानून से कबड्डी खेली जा सकती है।

Hari Shankar Tiwari

हरिशंकर तिवारी (Hari Shankar Tiwari) के बारे में बस इतना जान लीजिए कि श्री प्रकश शुक्ला जैसा कुख्यात गैंगेस्टर भी कभी उनका गुर्गा हुआ करता था। पूर्वांचल के क्राइम किंग हरिशंकर तिवारी बाद में माफिया से माननीय और फिर मंत्री बन गए। चुनाव हारे तो विरासत बेटे विनय शंकर तिवारी को सौंप दिया। वही इस बार उनके बेटे विनय फिर से गोरखपुर के चिल्लूपार (Chillupar ) विधानसभा सीट पर दावेदारी कर रहे हैं। बता दे, यह सीट हरिशंकर तिवारी का गढ़ माना जाता है। 1985 से लेकर 2007 तक हरिशंकर तिवारी का यहां कब्जा रहा है, तो आइए उनकी कहानी को एकदम शुरू से जानते है…..

छात्र राजनीति से शुरुआत

1970 का दशक था। पटना यूनिवर्सिटी में चल रहे जेपी आंदोलन की आग गोरखपुर यूनिवर्सिटी तक पहुंच चुकी थी। छात्रों के नारे राजनीति में नई बुनियाद स्थापित कर रहे थे। यूनिवर्सिटी नेता बनने की नर्सरी बन चुकी थी। गोरखपुर यूनिवर्सिटी के नेता भला क्यों पीछे रहते। वे भी लग गए नेता बनने में। 1972-73 में हरिशंकर तिवारी ने राजनीति में एंट्री लिया। एमएलसी का चुनाव लड़े, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। हरिशंकर तिवारी राजनीति के साथ-साथ ठेकेदारी कर रहे थे।

उस वक्त दो गुट थे। पहला हरिशंकर तिवारी का और दूसरा बलवंत सिंह का। हरिशंकर ब्राह्मण छात्रों के मसीहा बन रहे थे, तो बलवंत ठाकुरों के। इसी दौरान बलंवत सिंह को मिले वीरेंद्र प्रताप शाही। यहां से बलवंत की शक्ति दोगुनी हो गई।

तिवारी vs शाही

हरिशंकर तिवारी का जिक्र हो तो वीरेंद्र प्रताप शाही का नाम जरूर आता है। जब पूर्वांचल की सियासी दुनिया में बाहुबलिओं का प्रवेश हुआ, तो इसके सूत्रधार हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही ही थे। दोनों एक ही क्षेत्र के रहने वाले थे लेकिन वर्चस्व की लड़ाई को लेकर जमकर अदावत भी थी। 1980 का दशक ऐसा था जब शाही और तिवारी के बीच गैंगवार की गूंज देश-विदेश तक सुनाई देती थी।

Virendra Pratap Shahi and Hari Shankar Tiwari

1980 के दशक में छात्र राजनीति का वर्चस्व बढ़ा और गोरखपुर में ब्राह्मण- ठाकुर की लॉबी शुरू हुई। वीरेंद्र शाही (Virendra Pratap Shahi) को मठ का समर्थन मिला तो हरिशंकर तिवारी ब्राह्मणों के नेता बनकर उभरे। यहीं से दोनों में गैंगवार शुरू होती है। उस वक्त खौफ इस कदर तक था कि गैंगवार से पहले ऐलान हो जाता था कि आज घर से कोई निकलेगा नहीं और स्थानीय लोग घरों में दुबके रहते थे। बाहर फायरिंग की आवाजें आती थीं और कई लोग मारे जाते थे।’

पहले साथ काम करते थे, फिर रास्ते अलग हो गए

कहा जाता है दोनों पहले एक साथ ही काम करते थे, पर लेनदेन के विवाद में दोनों के बीच टकराव शुरू हो गया और दोनों के रास्ते अलग हो गए थे।

रेलवे के ठेकों को लेकर शुरू हुई जंग

अस्सी के दशक में पूर्वांचल में सरकारी परियोजनाओं की शुरुआत होने के साथ ही माफिया और सरकारी ठेकों में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हुई। हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही का गुट पैसा कमाने के लिए रेलवे स्क्रैप की ठेकेदारी करने लगा । यहां दोनों ने बढ़िया पैसा कमाया और हथियार खरीदे। दोनों गुटों के बीच कई बार गोरखपुर के बीच शहर में भिड़ंत हुई। गोलियां चलीं। कई निर्दोष लोग मारे गए। गोरखपुर में सरकारी व्यवस्था घुटने टेक चुकी थी। यहां अब दोनों की मर्जी ही चलती थी। कुछ ही साल में इटली में पैदा हुआ गैंगवार शब्द पूर्वांचल की पहचान बन गया। वैसे तो गाजीपुर और वाराणसी माफिया का बड़ा केन्द्र रहा है, लेकिन इसकी शुरुआत गोरखपुर से हुई। जिसमें सबसे पहला नाम हरिशंकर तिवारी का आया था।

गोरखपुर में माफियाराज स्थापित

गोरखपुर शहर इन दोनों गुटों को अच्छे से जान गया था। वीरेंद्र अपने महाराज गंज में, तो हरिशंकर तिवारी गोरखपुर में दरबार लगाते। लोग अपनी समस्याओं को थाने या कचहरी ले जाने के बजाय इनके दरबार में पहुंचते और तुरंत निपटारा हो जाता था। ये क्रम चल ही रहा था कि हरिशंकर तिवारी ने राह बदल ली।

जेल से चुनाव जीत गए

1985 में हरिशंकर तिवारी जेल में बंद थे। माफिया से माननीय बनना था इसलिए चिल्लूपार सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर पर्चा भरा और कांग्रेस के मार्कंडेय नंद को 21,728 वोटों से हरा कर माननीय बन गए । देश में ये पहला मौका था जब कोई माफिया जेल के अंदर रहते हुए चुनाव जीता गया था। यहां से हरिशंकर तिवारी की शक्ति बढ़ गई।

शातिर हरिशंकर तिवारी ने कभी भी सीधे फ्रंटफुट पर नहीं खेला। इसके बावजूद 1980 के दशक में हरिशंकर तिवारी पर गोरखपुर जिले में 26 मामले दर्ज हुए। इनमें हत्या करवाना, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग, छिनैती, रंगदारी, वसूली, सरकारी काम में बाधा डालने जैसे मामले दर्ज हुए। लेकिन आज तक कोई भी अपराध उन पर साबित नहीं हो पाया। बता दे, हरिशंकर तिवारी को प्यार से लोग बाबूजी कहकर बुलाते हैं।

किराए के कमरे से महल तक का सफर

कभी गोरखपुर में पढ़ने के लिए किराए के कमरे में रहने वाले हरिशंकर के पास अब जटाशंकर मोहल्ले में किले जैसा घर है। जिसे वह हाता कहते हैं। इसी हाते से पूरे प्रदेश की राजनीति तय करने लगे।

खास गुर्गे श्रीप्रकाश ने की वीरेन्द्र प्रताप शाही की हत्या

अपने गैंग को विस्तार देने के लिए हरिशंकर तिवारी ने जो तरीका आजमाया वो पूर्वांचल के युवाओं को लुभाने लगा था। युवा उनके साथ जुड़ने लगे थे। लोग कहते हैं कि असल में तिवारी धनबल बाहुबल और हथियारों के जरिए अपराध को संरक्षण देते थे। उन्होंने हमेशा मोहरों का इस्तेमाल किया।

इन्हीं में से एक बड़ा मोहरा था श्रीप्रकाश शुक्ला, जिसनेवीरेन्द्र प्रताप शाही की लखनऊ में सरेआम हत्या कर दी थी। हत्या भले श्रीप्रकाश ने की लेकिन माफिया की दुनिया में हरिशंकर तिवारी का कद बढ़ गया क्योंकि सब जानते थे कि श्रीप्रकाश उनका खास गुर्गा था।

शुरू हुआ राजपूत बनाम ब्राह्मण का एक नया संघर्ष

वीरेन्द्र प्रताप शाही की हत्या के बाद तो मानों पूर्वांचल के अपराध जगत में हरिशंकर तिवारी का नाम सबसे बड़ा हो गया। हालांकि इस हत्याकांड के साथ ही पूर्वांचल में राजपूत बनाम ब्राह्मण का एक नया संघर्ष भी शुरु हो गया। जिसके केन्द्र में हरिशंकर तिवारी रहे। हालांकि, हरिशंकर तिवारी अपने शातिर दिमाग का इस्तेमाल करके हर पार्टी के चहेते बने रहे और अपने अतीत को वर्तमान पर कभी हावी नहीं होने दिया।

हर पार्टी की जरूरत बन गए थे हरिशंकर तिवारी

जेल से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में हरिशंकर तिवारी ने कांग्रेस उम्मीदवार को पटखनी देकर सनसनी मचा दी थी और वह भी बड़े अंतर से। उनकी ताकत दो भांपते हुए कांग्रेस ने भी अगले चुनाव में उन्हें टिकट दे दिया और 2007 तक गोरखपुर की चिल्लूपार सीट से उनकी जीत का सिलसिला चलता रहा। इस बीच वह अलग-अलग दलों की जरूरत बनते गए। 1998 में कल्याण सिंह ने अपनी सरकार में मंत्री बनाया, तो बीजेपी के ही अगले मुख्यमंत्री बने रामप्रकाश गुप्त और राजनाथ सिंह सरकार में भी वह मंत्री हुए। इसके बाद मायावती सरकार में मंत्री बने और 2003 से 2007 तक मुलायम सिंह यादव की सरकार में भी मंत्री रहे।

वीर बहादुर सिंह बने CM

उस वक्त वीर बहादुर सिंह यूपी के सीएम हुआ करते थे। कहते हैं कि तिवारी और शाही दोनों पर नकेल कसने के लिए ही पहली बार यूपी में गैंगस्टर ऐक्ट लागू किया गया था। उनकी आधी ताकत प्रदेश को संभालने और आधी गोरखपुर में माफियाओं को संभालने में लग रही थी। माफियाओं को कंट्रोल करने के लिए उन्होंने गुण्डा एक्ट बनाया।

अपराध करने के लिए गुर्गे भाड़े पर लाते

बता दे, हरिशंकर तिवारी पर आरोप तो ना जाने कितने लगे लेकिन साबित एक भी नहीं हो पाया,..कहते है हरिशंकर तिवारी ने उस वक्त अपना दामन साफ बनाए रखेने के लिए नायाब तरीका निकाला था। हरिशंकर तिवारी खुद जुर्म करते नहीं थे बल्कि उसके लिए लोगों को हायर करते थे। कहते हैं हरिशंकर तिवारी के दो शार्प शूटर थे साहेब सिंह और मटनू सिंह। ये दोनों को जैसे ही हरिशंकर तिवारी का इशारा मिलता ये काम पर लग जाते। इन हायर किए शूटर्स की वजह से हरिशंकर तिवारी की व्हाइट कॉलर वाली छवि बनी रही।

हरिशंकर की शरण में श्रीप्रकाश शुक्ला

हरिशंकर तिवारी की बात हो और श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम न आये ऐसा नहीं हो सकता ! क्योंकि वह श्रीप्रकाश ही था जिसने CM को मारने की सुपारी ले ली थी। दो गुटों की लड़ाई के बीच यूनिवर्सिटी में एक नया लड़का आया। नाम था श्रीप्रकाश शुक्ला (Gangster Shri Prakash Shukla)। खुराक बढ़िया थी इसलिए शरीर पहलवान की तरह था। 1993 में श्रीप्रकाश शुक्ला की बहन के साथ छेड़खानी हो गई। श्रीप्रकाश को पता चला तो उसने राकेश तिवारी नाम के व्यक्ति की सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी। इस हत्या के बाद श्रीप्रकाश का नाम गोरखपुर के हर घर तक पहुंच गया।

श्रीप्रकाश शुक्ला को पुलिस खोज रही थी। उस वक्त श्रीप्रकाश को संरक्षण दिया हरिशंकर तिवारी ने। बताते हैं कि हरिशंकर ने श्रीप्रकाश को बैंकॉक भेज दिया। मामला ठंडा हुआ तो वह वापस आ गए। श्रीप्रकाश को पैसा-पावर और सत्ता चाहिए थी इसलिए उसने बिहार के सबसे बड़े बाहुबली सूरजभान सिंह से हाथ मिला लिया। ये बात हरिशंकर तिवारी को पसंद नहीं आई, लेकिन श्रीप्रकाश ने इसी दौरान एक ऐसा काम कर दिया जो हरिशंकर तिवारी चाह कर कभी नहीं कर पाए।

विधायक वीरेंद्र प्रताप शाही का मर्डर

हरिशंकर तिवारी के कहने पर श्रीप्रकाश शुक्ला ने 1997 में महाराजगंज के बाहुबली विधायक वीरेंद्र प्रताप शाही की लखनऊ शहर के अंदर गोली मारकर हत्या कर दी। बहरहाल, इस हत्या के बाद श्रीप्रकाश ने कई और अपराध किए। कहा जाता है कि श्रीप्रकाश ने उस वक्त के CM कल्याण सिंह की हत्या के लिए 6 करोड़ की सुपारी ले ली। इसके बाद वह सरकार की नजर में खटक गए और STF ने उनका एनकाउंटर कर दिया।

पूर्वाचल में दिया जाना वाला हर ठेका तिवारी को ही मिलता था

पुलिस के रिकॉर्ड में हरिशंकर तिवारी लंबे समय तक हिस्ट्रीशीटर माफिया रहे हैं। छात्र जीवन में गोरखपुर के बीचो-बीच एक किराए के कमरे में रहने वाले तिवारी का आज जटाशंकर मुहल्ले में किले जैसा घर है। जो पूरे गोरखपुर में तिवारी हाता के नाम से जाना जाता है। बरसों से पूर्वाचल में दिया जाना वाला हर ठेका रेलवे से लेकर खनन तक का या तो तिवारीजी को खुद या उनके आदमी को ही मिलता था। तब वे निजी सुरक्षा गार्डो की सुरक्षा में रहते थे। लेकिन मंत्री बनने के बाद पुलिस के जवान उनकी सुरक्षा करते हैं। एक वक्त ऐसा आया, जब उन्हें पूर्वांचल के किसी भी विरोधी माफिया से खतरा नहीं था क्योंकि जो उनके खतरा बन सके ऐसा कोई जिन्दा ही नहीं बचा था। कहा जाता है कि उनके शूटरों नें तिवारी के सभी दुश्मिनों को ठिकाने लगा दिया था

आप सोच रहे होंगे कि जेल जाना, हिस्ट्रीशीटर, माफिया रहना, दर्जनों मुकदमों के बावजूद ऐसा इंसान चुनाव कैसे जीतता गया। इसके जवाब बेहद साधारण थे हरिशंकर तिवारी ने वो पढ़ लिया जो सबसे आसान भी था और सबसे मुश्किल भी ..हरिशंकर तिवारी ने चिल्लूपार की जनता का मन पढ़ लिया था। हरिशंकर तिवारी का चुनाव जीतने का वहीं पुराना फॉर्मूला था , रॉबिनहुड वाला। अपने इलाके में किसी गरीब को परेशान नहीं होने देना, अमीरों का पैसा लूटकर गरीबों में बांट देना, किसी के घर शादी-विवाह में पहुंच कर अनुग्रहीत कर देना है।.हरिशंकर तिवारी ने यही फॉर्मूला अपनाया और कामयाब रहे। सुनने में अजीब भले लगे लेकिन हरिशंकर तिवारी के लिए चिल्लूपार के लोगों के दिलों में खौफ और इज्जत दोनों एक साथ थी।

2 बार लगातार हार के बाद छोड़ी राजनीति

हरिशंकर तिवारी जेल की सलाखों के पीछे रहकर भी साल 1985 से लेकर 2007 तक यानी लगातार 6 बार चिल्लूपार विधानसभा सीट से विधायक रहे। सिर्फ विधायक ही नहीं बल्कि साल 1997 से लेकर 2007 तक लगातार यूपी कैबिनेट में मंत्री भी रहे। हरिशकंर तिवारी का अपना अलग ही स्वैग था, निर्दलीय चुनाव लड़ो और हर पार्टी की सरकार में मंत्री रहो। लेकिन 2007 के चुनाव में पहली बार उनकी जीत का रिकॉर्ड टूटा। पूर्व पत्रकार एवं बीएसपी उम्मीदवार राजेश त्रिपाठी ने उन्हें चुनाव में हरा दिया। इस चुनाव में इसके बाद फिर 2012 में उन्हें दोबारा हार का मुंह देखना पड़ा और चौथे नंबर पर खिसक गए। 2 बार हार के बाद हरिशंकर तिवारी ने अपनी राजनीतिक विरासत बेटे विनय शंकर तिवारी को दे दी। हरिशंकर तिवारी अभी भी लोकतांत्रिक कांग्रेस से जुड़े हैं। वही उनके छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी ने अपने पिता का बदला लेते हुए 2017 के चुनाव में बसपा के टिकट पर राजेश त्रिपाठी को हरा कर इस सीट पर फिर से अपना कब्ज़ा जमाया।

हरिशंकर तिवारी का परिवार

उनके दो बेटे है, बड़े बेटे भीष्म शंकर तिवारी गोरखपुर के संत कबीर नगर सीट से 2009 में सांसद रह चुके है, तो वही छोटे बेटा विनय शंकर तिवारी चिल्लूपार विधानसभा सीट से वर्त्तमान विधायक है।

Hari Shankar Tiwari Son Vinay Shankar Tiwari

फिलहाल हरिशंकर तिवारी की उम्र तकरीबन 82 साल है। वे गोरखपुर के जटाशंकर मुहल्ले में स्थित अपने किलेनुमा घर (Hata) में रहते है।

2012 में मिली हार के बाद उन्होंने एक भी चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन चिल्लूपार इलाके में इनका वर्चस्व आज भी कम नहीं हुआ है। शायद यही वजह है कि 2017 की मोदी लहर में भी हरिशंकर तिवारी ने अपने छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी को चिल्लूपार सीट के विधायक बनाने में सफल हुए। कहा जाता है कि अगर आपको यूपी की राजनीति में दिलचस्पी है तो आप हरिशंकर तिवारी को प्यार कर सकते हैं, नफरत कर सकते हैं लेकिन उनको इग्नोर नहीं कर सकते।

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