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जानिए कैसे हुआ था रावण का जन्म, सीता को अशोक वाटिका में रखने का क्या था कारण ?

  • राम से पहले भी तीन लोगों से हार चुका था दशानन
  • सीता को अशोक वाटिका में रखने के पीछे कारण था एक शाप

News24 Bite

October 15, 2021 11:22 am

आज विजयदशमी यानी दशहरा है। यह पर्व है बुराई पर अच्छाई की जीत की। इसी दिन भगवान राम ने रावण पर विजय पाई थी। पौराणिक पात्रों में रावण को सबसे शक्तिशाली राक्षस माना जाता है। वही कुछ लोग रावण को नायक की तरह देखते है, लेकिन हकीकत ये है कि रावण में भले ही कई खूबियां थीं, मगर उसका मूल स्वभाव राक्षसों वाला ही था।

रावण ने अच्छे काम भी किए थे, उसके कुछ सपने भी थे जो वो पूरा करना चाहता था, लेकिन वास्तव में रावण बुरा ही था, इसीलिए उसका अंत भी बुरा हुआ।

कैसे हुआ था रावण का जन्म?

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, रावण ऋषि विश्रवा और राक्षस सुमाली की बेटी कैकसी का पुत्र था।

पौराणिक काल में माली, सुमाली और मलेवन नाम के अत्यंत क्रूर राक्षस भाई हुआ करते थे। इन तीनों भाइयों ने ब्रम्हा की घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर परम पिता ब्रम्हा ने उन्हें बलशाली होने का वरदान दे दिया।

वरदान मिलने के पश्चात तीनों भाई स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक और पाताललोक में देवताओं सहित ऋषि-मुनियों और मनुष्यों पर अत्याचार करने लगे, इतना ही नहीं तीनों ने विश्वकर्मा को अपने वश मे कर लिया था और उनपर पर यह जोर डाला था कि वह उनके लिए एक सुन्दर से नगर का निर्माण करे। तब भगवान विश्वकर्मा ने विवश होकर अपनी बनाई हुई लंका नगरी उन्हें दे दिया। माल्यवान के सात पुत्र थे, दूसरे भाई सुमाली के दस पुत्र और एक पुत्री तथा सबसे छोटे भाई माली के चार पुत्र थे।

जब इन तीनों भाइयों का अत्याचार काफी बाढ़ गया तब ऋषि-मुनि और देवतागण भगवान विष्णु के पास गए और उनसे राक्षसो के अत्याचार की व्यथा सुनाई, तब भगवान विष्णु ने युद्ध में सभी राक्षसो का नाश कर दिया। उसके बाद शेष बचे हुए राक्षस सुमाली के नेतृत्व में लंका को त्याग कर पाताल में जा बसे. युद्ध में मिली पराजय के बाद बहुत दिनों तक सुमाली अपने परिवारजनों सहित पाताल में ही छुपा रहा।

राक्षसों के इस विनाश से राक्षस सुमाली बड़ा ही दुखी था। वह देवताओं पर फिर से विजय प्राप्त करने का उपाय सोचने लगा तभी उसे विचार आया कि क्यों न वो अपनी पुत्री का विवाह ऋषि विश्रवा से कर दे जिससे उसे कुबेर जैसे तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति आसानी से हो जाएगी।

फिर वह मन में यह विचार लिए अपनी पुत्री कैकसी के पास पहुंचा और उससे बोला हे पुत्री तुम विवाह के योग्य हो चुकी हो परन्तु मेरे भय की वजह से कोई भी विवहारती तुम्हारा हाथ मांगने मेरे पास नहीं आता इसलिए राक्षस वंश के कल्याण के लिए मैं चाहता हूं कि तुम परमपराक्रमी महर्षि विश्रवा के पास जाकर उनसे विवाह करो और पुत्र प्राप्त करो। वही पुत्र हम राक्षसों की देवताओं से रक्षा कर सकता है।

पिता के आज्ञा से कैकसी महर्षि विश्रवा के आश्रम पहुंची तब शाम हो चुकी थी….उस समय भयंकर आंधी चल रही थी….आकाश में मेघ बरस रहे थे…आश्रम पहुंचकर कैकसी ने सबसे पहले महर्षि का चरण वंदन किया और फिर अपने मन की इच्छा बताई।

कैकसी की इच्छा जानने के बाद महर्षि विश्रवा ने कहा मैं तेरी ये अभिलाषा पूर्ण कर दूंगा किंतु तुम कुबेला में मेरे पास आई हो अत: मेरे पुत्र क्रूर कर्म करने वाले होंगे उन राक्षसों की सूरत भी भयानक होगी। महर्षि विश्रवा के वचन सुन कैकसी उनको प्रणाम कर बोली हे ब्राह्मण आप जैसे ब्राम्हणवादी दौर मैं ऐसे दुराचारी पुत्रों की उत्पत्ति नहीं चाहती अतः आप मेरे ऊपर कृपा कीजिए तब महर्षि विश्रवा ने कैकसी से कहा कि तुम्हारा तीसरा पुत्र मेरी ही तरह धर्मात्मा होगा।

इस प्रकार उस कैकसी ने अपने पहले पुत्र को जन्म दिया जो रावण के नाम से तीनों लोकों में जाना गया, उसके बाद कैकसी के गर्भ से कुम्भकरण का जन्म हुआ उसके समान लम्बा-चौड़ा दूसरा कोई प्राणी न था. तदन्तर बुरी सूरत की सुपर्णखा उत्पन्न हुई सबके पीछे कैकसी के सबसे छोटे पुत्र धर्मात्मा विभीषण ने जन्म लिया।

तो आईये जानते है, रावण से जुड़ी कुछ खास बातें…..

रावण का नाम कैसे पड़ा : तो इसके पीछे कई तरह की कहानियाँ है। रावण का अर्थ होता है रुलाने वाला या भारी रोदन करने वाला। रावण जब पैदा हुआ तो बहुत जोर-जोर से रो रहा था। उसके रोने से पूरा भृह्माण्ड काँप उठा। तब नाम रखा गया रावण।

एक कहानी ये भी है कि जब रावण ने कैलाश पर्वत उठाने का प्रयाश किया, तो भगवान शिव ने अपने पैर के अँगूठे से दबा दिया। इसके वजन से कैलाश के निचे उसका हाथ दब गया और दर्द के कारन उसके अंशू निकल आए। इस रुदन पर भगवान शिव ने उसे रावण नाम दिया।

रावण के 10 सिर, तपस्या का परिणाम

इसके पीछे भी दो कहानियां है। पहली कहानी के अनुसार, भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए रावण ने अपना सिर काटकर यज्ञ में आहुति दे दिया। भगवान शिव ने सिर जोड़ दिया। लेकिन रावण ने फिर सिर काटकर यज्ञ में डाल दिया, भगवना ने फिर उसका सिर जोड़ दिया। ऐसा 10 बार हुआ और दसों बार भगवान ने उसके सिर जोड़ दिए। उसकी इस भक्ति से प्रसन्न होकर शिव जी ने उसे वर दिया कि ये सारे सिर उसके पास ही रहेंगे।

रावण विद्वान् था लेकिन अहंकारी भी

रावण निश्चित रूप से विद्वान था। लेकिन एक दोष थी उसमे कि वह था बहुत अहंकारी। वह वेदो का प्रकांड पंडित था। ऐसा माना जाता है कि वेदों की रचनाओं को सवरबद्ध करने का काम रावण ने ही किया था। ऐसे करने के लिए उसे भगवान शिव ने कहा था। वह भगवान शिव का परम भक्त था। शिव को प्रसन्न करने के लिए उसने कई मंत्रो की रचना की थी। शिव तांडव स्तोत्र भी रावण का रचा हुआ है। रावण चिकित्सा विज्ञान और तंत्र का भी जानकार था।

भाई से छिना लंका और पुष्पक विमान

लंका रावण की नहीं थी बल्किउसके सौतेले भाई कुबेर की थी। जो ब्रह्मा जी ने उसे दी थी। पुष्पक विमान भी कुबेर का ही था। ब्रह्मा जी से वरदान मिलने के बाद रावण सबसे लंका पंहुचा और कुबेर को हरा कर लंका और पुष्पक विमान दोनों पर कब्ज़ा जमा लिया।

सीता को महल के बजाए अशोक वाटिका में क्यों रखा ?

रावण विद्वान था लेकिन आततायी भी। रावण ने अपने भतीजे नलकुबेर की पत्नी रंभा के साथ बलात्कार किया था। जिसके बाद नलकुबेर ने ही रावण को श्राप दिया था कि अगर वो किसी महिला को बिना उसकी सहमति से छुएगा तो उसके सर के 100 टुकड़े हो जायेंगे। यही कारण था कि रावण ने सीता को अपने महल के बजाये अशोक वाटिका में रखा था।

बुराई को बढ़ाने के लिए रावण के अधूरे सपने

रावण के कुछ सपने थे। वो मदिरा यानी शराब से बदबू हटाना चाहता था। ताकि उसे हर कोई पी सके और किसी को मालूम ना चले।

अग्नि से वह धुआँ हटाना चाहता था, ताकि यज्ञ से उठने वाले धुएं से माहौल में सकरत्मक्ता न बढ़े और देवता शक्तिशाली ना हो। सवर्ग तक सीढ़ी बनाना चाहता था ताकि कोई भी बिना परेशानी के जब चाहे वहां आ जा सके।

रावण के लिए अपने परिवार वाले महत्वपूर्ण नहीं थे

रावण का परिवार बहुत बड़ा था लेकिन उसने अपनी सत्ता के सामने कभी परिवार की परवाह नहीं की। उसकी बहन सुपर्णखा ने विधुतजिव्ह नामक राक्षस से शादी की थी। रावण इससे खुश नहीं था इसलिए धोखे से उसने विधुतजिव्ह को मार डाला।

विभीषण को लंका से निकाल दिया।

मामा मारीच को सोने का हिरन बनने पर मजबूर किया।

सौतेले भाई कुबेर से सब कुछ छीन लिया।

राम से पहले रावण तीन लोगो से हारा था

आपको जानकर हैरानी होगी कि रावण राम से पहले भी तीन लोगो से हार चूका था। वानरराज बालि से युद्ध करने करने गए रावण को बालि ने रावण को अपने बगल में दबा कर चार समुद्रो की परिक्रमा की थी।

सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को अपने राज्य महिष्मति में कैद कर लिया था।

पाताल लोग में राजा बलि से युद्ध करने गए रावण को बच्चो ने पकड़ कर अस्तबल में बांध दिया था।

सवर्ग नर्क का भेद हटाकर खुद भगवान बनना चाहता था

रावण खुद को सर्वशक्तिशाली और सक्षम मानता था। वह चाहता था कि दुनिया देवताओं को छोड़कर उसकी पूजा करें। सवर्ग नर्क का भेद मिटाना चाहता था वह।

ये तीन वजह थी जिससे उसका पूरा कुल खत्म हो गया

रावण को बुराइयों का प्रतीक माना जाता है। रावण की बुराइयों के कारण उसके वंश का नाश हो गया। अहंकार, गुस्सा और काम की वजह से रावण ने अपने कुल को नष्ट करवा दिया।

अहंकार की वजह से श्रीराम को समझा सामान्य इंसान

रावण को अपनी शक्तियों पर इतना घमंड था कि वह सभी देवताओं से खुद को श्रेष्ठ समझता था। जब रावण सीता जी का हरण करके लंका ले आया तो उसकी पत्नी मंदोदरी ने उसे बहुत समझाया था कि वह श्रीराम से बैर न करें, लेकिन रावण को खुद पर अभिमान था, इस कारण वह श्रीराम को सामान्य इंसान समझ रहा था।

गुस्से में अपने भाई विभीषण को निकाल दिया था दरबार से

रावण को बात-बात पर गुस्सा आ जाता था। वह गुस्से में सही-गलत बात को भी समझ नहीं पाता था। यही कारण था कि जब विभीषण ने रावण से सीता को लौटाने और राम से क्षमा मांगने की बात कही तो वह क्रोधित हो गया। रावण ये बात सहन नहीं कर सका कि उसके सामने उसके शत्रु की प्रशंसा की जा रही थी। गुस्से में रावण ने विभीषण को लात मारकर दरबार से निकाल दिया। विभीषण श्रीराम की शरण में चले गए। रावण के कई रहस्य विभीषण ने श्रीराम को बताए, जिनकी वजह से उसकी हार हो गई।

रावण महिलाओं पर रखता था बुरी नजर

रावण महिलाओं पर हमेशा बुरी नजर रखता था। रावण ने एक बार रंभा को देखा तो वह उस पर मोहित हो गया। रावण ने उसका रास्ता रोक लिया। रंभा ने प्रार्थना की कि वह उसकी पुत्र वधु के समान है और वह नलकुबेर के यहां जा रही है। नलकुबेर रावण के सौतेले भाई कुबेर के पुत्र थे। रावण ने रंभा की बात नहीं सुनी। जब ये बात नलकुबेर को मालूम हुई तो उसने रावण को श्राप दे दिया किया अब से अगर वह किसी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध स्पर्श करेगा या अपने महल में रखेगा तो वह भस्म हो जाएगा। इसी श्राप की वजह से रावण ने सीता को अपने महल में नहीं, अशोक वाटिका में रखा था। आमतौर पर लोग मानते हैं कि शूर्पणखा के अपमान का बदला लेने के लिए रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन ये बात सच नहीं है, रावण देवी सीता की सुंदरता से मोहित हो गया था, इस वजह से उसने सीता जी का हरण किया था।

सीख – रावण की बुराइयों से हम ये सीख ले सकते हैं कि हमें इन तीनों बुराइयों से बचना चाहिए। जिन लोगों में ये तीन बुराइयां होती हैं, उनका जीवन बर्बाद हो सकता है।

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