पटना. कोरोना (Coronavirus) आपदा को देखते हुए हड़ताली शिक्षकों से अविलंब वार्ता कर हड़ताल खत्म करवाने के बजाय सरकार शिक्षक आंदोलन को दबाने के लिए षडयंत्र रचने में जुटी है। विभागीय पदाधिकारियों के द्वारा व्हाटसएप्प के जरिये बगैर काम किये योगदान करके हड़ताल से वापस लौटने का लॉलीपाप शिक्षकों को दिखाया जा रहा है। विगत 17 फरवरी से ही सूबे के चार लाख से अधिक नियोजित शिक्षक लगातार 45 दिनों से सहायक शिक्षक- राज्यकर्मी का दर्जा तथा नियमित शिक्षकों के समान वेतन एवं सेवा शर्त को लेकर हड़ताल पर हैं।
इसी बीच कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के कारण हर जगह भयावह हालात बनते दिख रहे हैं। शिक्षकों के समक्ष भी चौतरफा संकट की स्थिति बन गई है। शिक्षकों का कहना है कि सरकार की चुप्पी के कारण शिक्षक हड़ताल पर बने रहने को बाध्य हैं। बिहार सरकार ने अपने मल्टी टास्किंग कर्मी नियोजित शिक्षक परिवारों को कोरोना और भूखमरी के बीच पीसने को छोड़ दिया है। चार लाख से अधिक शिक्षकों और उनके वेतन पर आश्रित लाखों परिवारिक सदस्यों के प्रति बिहार सरकार की संवेदनहीनहीनता चरम पर है।
बिहार के मुख्यमंत्रीजी को इस बात की चिंता नहीं है कि उनके ही शिक्षक अपने परिवार के साथ बगैर वेतन इस महामारी का सामना कैसे कर सकेंगे, जबकि दूसरी ओर विभिन्न सरकारों के द्वारा अलग-अलग विभागों में अग्रिम वेतन भुगतान तथा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में एक मुश्त अग्रिम भुगतान किया जा रहा है। सरकार के इस निरंकुश रवैये के खिलाफ लॉकडाउन में अपने घरों में बंद शिक्षकों ने अब संघर्षों में नवाचार प्रारंभ कर दिया है।
इसी क्रम में आज बिहार के हड़ताली शिक्षक परिवारों ने कोरोना महामारी व अपनी मांगों को लेकर वेदना का प्रदर्शन किया। लॉकडाउन का पालन करते हुए शिक्षकों ने अपने अपने घरों में शिक्षक वेदना दिवस मनाते हुए हवन पुजन नमाज अरदास के माध्यम से अपनी आवाज उठायी।
इस संबंध में जानकारी देते हुए टीइटी एसटीइटी उत्तीर्ण नियोजित शिक्षक संघ गोपगुट के प्रदेश अध्यक्ष मार्कंडेय पाठक एवं प्रदेश प्रवक्ता अश्विनी पाण्डेय ने कहा कि सरकार को अपने कर्मियों के प्रति संवेदनशील रुख अपनाना होगा। यह वक्त जन स्वास्थ्य और सार्वजनिक शिक्षा के प्रति सरकार के गंभीरतापूर्वक कदम उठाने का है। अहम त्यागकर सरकार को शिक्षकों के मसले पर चुप्पी तोड़नी चाहिए।
नियोजित शिक्षकों को शामिल करते हुए कोरोना महामारी से निपटने के लिए सघन टीम बनाकर कोरोना के खिलाफ मजबूत मोर्चेबंदी की जा सकती है। सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए पंचायत प्रतिनिधियों व शिक्षकों को लॉकडाउन, फिजिकल डिस्टेंसिंग एवं पंचायतस्तरीय नियंत्रण के कार्य में लगाया जा सकता है. सरकार शिक्षक हड़ताल के मसले पर संवेदनशीलता के साथ निर्णय ले। बिहार का शिक्षक समाज, कोरोना के विरुद्ध सरकार व जनता के साथ मजबूती से एकजुट हैं।
संगठन के प्रदेश सचिव शाकिर ईमाम, अमित कुमार नाजिर हुसैन,और प्रदेश कोषाध्यक्ष संजीत पटेल ने कहा कि कोरोना से डरकर नहीं, कोरोना से साझे तौर पर लड़कर ही मानवता की लड़ाई जीती जा सकती है। कोरोना आपदा की इस चुनौतीपूर्ण बेला में संक्रमण से केवल खुद ही नही बचना है बल्कि दूसरों को भी बचाना है। एहतियात की जागरुकता फौरी कार्यभार है। बिहार सरकार हठधर्मिता छोड़कर बिहार के हड़ताली शिक्षकों की मांगों पर संवेदनशीलता से विचार करे और शिक्षकों की हड़ताल समाप्त कराते हुए कोरोना महामारी से निपटने के आपदा प्रबंधन की ठोस रणनीति बनाये, जब तक सरकार शिक्षकों को लेकर संवेदनशील पहलकदमी नही लेती लॉकडाउन का पालन करते हुए शिक्षक हड़ताल जारी रहेगी।
प्रदेश मीडिया प्रभारी राहुल विकास ने कहा कि स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र का संपूर्ण सरकारीकरण होना चाहिए। दुनिया के जिन देशों में शिक्षा और स्वास्थ्य राष्ट्रीयकृत है वहां की सरकारें कोरोना से लड़ने में ज्यादा सक्षम है। बिहार के शिक्षकों की बुनियादी लड़ाई निजीकरण ठेकाकरण और पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप की जनविरोधी नीतियों के ही खिलाफ है। आपदा की तमाम विपरित परिस्थितियों में सरकारी सैक्टर के अस्पताल ही काम आ रहे हैं और सरकारी स्कूलों का नियंत्रणकक्ष ही महती भूमिका निभा रहा है. लिहाजा यह वक्त आपदा का मुकाबला करने के साथ साथ निजीकरण की नीतियों के विफलता के मूल्यांकन का भी है। बिहार के शिक्षक कोरोना महामारी के खिलाफ सरकार और जनता के साथ बने हुए हैं।