रामायण के मुख्य पात्र राम, लक्ष्मण, भारत, सीताजी, बजरंगवली ये सब किरदार निभाने वाले कलाकार तो प्रसिद्ध हो ही गए, साथ ही जिसने भी अहम भूमिकाएं निभाईं, उनकी भी विशेष पहचान बन गई। और वे सभी कलाकार असल जीवन में अपने वास्तविक स्वरूप से ज्यादा उस किरदार के रूप में पहचाने जाने लगे, जिनकी भूमिकाएं उन्होंने निभाईं थी।
आज हम आपको रामायण में सबमे अहम किरदार निभाने वाले लंकापति रावण के बारे में महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहें है जिसके बारे में आप सायद नहीं जानते होंगे।
300 गुजराती फिल्मों में काम कर चुके
धारावाहिक रामायण में रावन (ravan) की भूमिका गुजराती फिल्मों के मशहूर अभिनेता अरविन्द त्रिवेदी (Arvind Trivedi) ने निभाई थी। 1937 में जन्मे अरविन्द मूल रुप से मध्य प्रदेश स्थित इंदौर के उज्जैन शहर में ताल्लुक रखते हैं। उनके बड़े भाई उपेंद्र त्रिवेदी गुजराती थियेटर के जाने माने आर्टिस्ट थे। उनको देखकर ही अरविंद ने एक्टिंग करने का मन बनाया। अरविंद का करियर गुजराती रंगमंच से शुरू हुआ, वे लगभग 300 गुजराती भाषा की धार्मिक और सामाजिक फिल्मों में काम कर चुके है।
भजपा के टिकट पर बने संसद
1991 में गुजरात के साबरकाठा से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के टिकट पर जीतकर सांसद बने, लेकिन उन्हें एक अभिनेता के तौर पर राजनीति ज्यादा रास नहीं आई, और फिर से वो अभिनय की अपनी दुनियां में वापस लौट आए।
असल जिंदगी में भी लोग उन्हें रावण समझने लगे थे
अपनी दमदार संवाद अदायगी (Dialogue delivery) के द्वारा लोगों दिलों पे राज करने वाले अरविन्दजी ने रावण के किरदार को जीवंत कर दिया, कहते हैं, वो अपने इस किरदार में इतने ज्यादा प्रभावी लगे थे कि, लोग असल जिंदगी में भी उन्हें वाकई रावण ही समझने लगे थे। लेकिन असल जीवन में अरविन्द त्रिवेदी बहुत ही धार्मिक इंसान हैं।
रावण का रोल नहीं करना चाहते थे
बता दे, अरविन्द रावण का रोल नहीं करना चाहते थे। वे, रामानंद सागर के पास केवट के रोल के लिए ऑडिशन देने गए थे, लेकिन रामानंद सागर ने उन्हें रावण के लिए चुन लिया। हुआ ऐसा कि जब सभी आये कलाकारों का ऑडिशन हो गया तो रामानंद सागर ने अरविन्द को अंदर बुलाया और एक स्क्रिप्ट दी पढ़ने के लिए, स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद अरविन्द अभी कुछ कदम चले ही थे कि रामानंद सागर ने खुशी से चहकते हुए कहा, “बस, मिल गया मुझे मेरा लंकेश। और अब तुम रावण का किरदार निभाओगे, बस वहीँ से अरविन्द के रावण बनने की कहानी शुरू हो गई, और उन्होंने अपनी उस भूमिका के माध्यम से घर घर में अमर हो गए।
अरविंद त्रिवेदी का नाम लंकापति रावण हो गया
अरविंद त्रिवेदी के अनुसार, इस सीरियल के बाद वे लोगों के लिए अरविंद त्रिवेदी नहीं, बल्कि लंकापति रावण हो गए। उनके बच्चों को लोग रावण के बच्चे और पत्नी को मंदोदरी के नाम से पुकारने लगे थे। बता दे, जिस दिन सीरियल में रावण मारा गया था, उस दिन अरविंद के इलाके में लोगों ने शोक मनाया था।
10 किलो का मुकुट
रावण का रोल करना अरविंद त्रिवेदी के लिए काफी मुश्किल था, उन्हें रावण के किरदार के लिए तैयार होने में 5 घंटे लगते, काफी भारी कॉस्ट्यूम था, लगभग 10 किलो का सिर्फ मुकुट ही था, इसके अलावा आभूषणों का वजन अलग था।
" />Ramayan. सन 1987 में दूरदर्शन ( DD National) पर शुरू हुई और रामानंद सागर (Ramanand Sagar) द्वारा बनाई गई बहुचर्चित धारावाहिक रामायण के बारे में कौन नहीं जनता, धारावाहिक इतना लोकप्रिय हुआ कि इसमें काम करने वाले सभी कलाकारों ने दर्शकों के दिलों में खास जगह बना लिया। रामायण के हर पात्र की कोई ना कोई खास विशेषता थी।
रामायण के मुख्य पात्र राम, लक्ष्मण, भारत, सीताजी, बजरंगवली ये सब किरदार निभाने वाले कलाकार तो प्रसिद्ध हो ही गए, साथ ही जिसने भी अहम भूमिकाएं निभाईं, उनकी भी विशेष पहचान बन गई। और वे सभी कलाकार असल जीवन में अपने वास्तविक स्वरूप से ज्यादा उस किरदार के रूप में पहचाने जाने लगे, जिनकी भूमिकाएं उन्होंने निभाईं थी।
आज हम आपको रामायण में सबमे अहम किरदार निभाने वाले लंकापति रावण के बारे में महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहें है जिसके बारे में आप सायद नहीं जानते होंगे।
300 गुजराती फिल्मों में काम कर चुके
धारावाहिक रामायण में रावन (ravan) की भूमिका गुजराती फिल्मों के मशहूर अभिनेता अरविन्द त्रिवेदी (Arvind Trivedi) ने निभाई थी। 1937 में जन्मे अरविन्द मूल रुप से मध्य प्रदेश स्थित इंदौर के उज्जैन शहर में ताल्लुक रखते हैं। उनके बड़े भाई उपेंद्र त्रिवेदी गुजराती थियेटर के जाने माने आर्टिस्ट थे। उनको देखकर ही अरविंद ने एक्टिंग करने का मन बनाया। अरविंद का करियर गुजराती रंगमंच से शुरू हुआ, वे लगभग 300 गुजराती भाषा की धार्मिक और सामाजिक फिल्मों में काम कर चुके है।
भजपा के टिकट पर बने संसद
1991 में गुजरात के साबरकाठा से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के टिकट पर जीतकर सांसद बने, लेकिन उन्हें एक अभिनेता के तौर पर राजनीति ज्यादा रास नहीं आई, और फिर से वो अभिनय की अपनी दुनियां में वापस लौट आए।
असल जिंदगी में भी लोग उन्हें रावण समझने लगे थे
अपनी दमदार संवाद अदायगी (Dialogue delivery) के द्वारा लोगों दिलों पे राज करने वाले अरविन्दजी ने रावण के किरदार को जीवंत कर दिया, कहते हैं, वो अपने इस किरदार में इतने ज्यादा प्रभावी लगे थे कि, लोग असल जिंदगी में भी उन्हें वाकई रावण ही समझने लगे थे। लेकिन असल जीवन में अरविन्द त्रिवेदी बहुत ही धार्मिक इंसान हैं।
रावण का रोल नहीं करना चाहते थे
बता दे, अरविन्द रावण का रोल नहीं करना चाहते थे। वे, रामानंद सागर के पास केवट के रोल के लिए ऑडिशन देने गए थे, लेकिन रामानंद सागर ने उन्हें रावण के लिए चुन लिया। हुआ ऐसा कि जब सभी आये कलाकारों का ऑडिशन हो गया तो रामानंद सागर ने अरविन्द को अंदर बुलाया और एक स्क्रिप्ट दी पढ़ने के लिए, स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद अरविन्द अभी कुछ कदम चले ही थे कि रामानंद सागर ने खुशी से चहकते हुए कहा, “बस, मिल गया मुझे मेरा लंकेश। और अब तुम रावण का किरदार निभाओगे, बस वहीँ से अरविन्द के रावण बनने की कहानी शुरू हो गई, और उन्होंने अपनी उस भूमिका के माध्यम से घर घर में अमर हो गए।
अरविंद त्रिवेदी का नाम लंकापति रावण हो गया
अरविंद त्रिवेदी के अनुसार, इस सीरियल के बाद वे लोगों के लिए अरविंद त्रिवेदी नहीं, बल्कि लंकापति रावण हो गए। उनके बच्चों को लोग रावण के बच्चे और पत्नी को मंदोदरी के नाम से पुकारने लगे थे। बता दे, जिस दिन सीरियल में रावण मारा गया था, उस दिन अरविंद के इलाके में लोगों ने शोक मनाया था।
10 किलो का मुकुट
रावण का रोल करना अरविंद त्रिवेदी के लिए काफी मुश्किल था, उन्हें रावण के किरदार के लिए तैयार होने में 5 घंटे लगते, काफी भारी कॉस्ट्यूम था, लगभग 10 किलो का सिर्फ मुकुट ही था, इसके अलावा आभूषणों का वजन अलग था।