यहां अब कोई सिख या हिन्दू खानदान के लोग नहीं रहते, लेकिन भगत सिंह की हवेली को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर एक फोटो गैलरी में तब्दील कर दिया गया है। ये हवेली बंटवारे के बाद फज्ल कादिर वरक को अलॉट हुई थी। अब उनका ही खानदान इसकी देखभाल करता है।
भगत सिंह का घर और स्कूल 2014 में उस वक्त के DCO (डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेशन ऑफिसर) ने करीब एक करोड़ रुपए खर्च कर ठीक कराए थे। नूरुल अमीन मेंगल ने अब सेक्रेटरी लोकल गवर्नमेंट बनने के बाद ‘दिलकश लायलपुर’ के नाम से भगत सिंह से जुड़ी इमारतों को बेहतर करने का बीड़ा उठाया है।
2014 में जब सरकार ने भगत सिंह की हवेली को सकाफती वरसा करार दिया तो उसे पुरानी बुनियादों पर दोबारा बहाल करने के लिए छत के कुछ बाले और शहतीर बदले गए और बाकी हिस्से को रंदा लगाकर नया किया गया। इसमें लगे दरवाजे, खिड़कियां, फर्श और छतें उसी दौर की हैं।
यहां भगत सिंह द्वारा इस्तेमाल की गई तिजोरी आज भी सुरक्षित है। बता दे, फज्ल कादिर के वारिस वरक साकिब वरक इस घर की देखभाल का खर्चा अपनी जेब से उठाते हैं।
भगत सिंह ने गांव के जिस स्कूल में पढ़ाई की थी वो स्कूल अब भी है। दो कमरों की वो इमारत आज भी उसी हालत में मौजूद है जैसी वो आज से सौ साल पहले थी। जिस क्लास रूम में कभी भगत सिंह पढ़ा करते थे, उसकी दीवारों पर अब कायद ए आजम मुहम्मद अली जिन्नाह और शायर ए मशरिक अल्लामा इकबाल के साथ-साथ भगत सिंह की तस्वीर भी लगी हुई है।
इस स्कूल के हेडमास्टर नसीर अहमद खुद भी भगत सिंह के चाहने वालों में शामिल हैं। उन्होंने अपने हीरो के सम्मान में एक नज्म लिखी है, जो इस इमारत के क्लास रूम और भगत सिंह की हवेली में मौजद है।
बता दे, भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन नाम का एक संगठन भगत सिंह की यादों को पाकिस्तान में संजोने का काम कई सालों से करता आ रहा है। इस संगठन के लोग गांव में 23 मार्च को उनके शहादत दिवस सरदार भगत सिंह मेले की भी आयोजन करते हैं है। कहते हैं उनके दादा ने एक पेड़ लगाया था जो करीब 120 साल पुराना आम का पेड़ है, वो आज भी वहां मैजूद है। उनके गांव का नाम बदल कर भगतपुरा रख दिया गया है।
" />पाकिस्तान में भगत सिंह की हवेली. भारत की आजादी की लड़ाई के सबसे बड़े हीरो भगत सिंह के बारे में कौन नहीं जानता! लेकिन बहुत कम लोग होंगे जो यह जानते है कि भगत सिंह की हवेली आज भी पाकिस्तान के पंजाब स्थित फैसलआबाद (लायलपुर) शहर की तहसील जरांवाला में एक छोटे से गावं “बंगा गांव” में मौजूद है। यह वही हवेली है जहां भगत सिंह का जन्म हुआ था और जहां उन्होंने अपना बचपन बिताया था। इस हवेली को भगत सिंह के दादा ने 1890 में बनवाया था।
यहां अब कोई सिख या हिन्दू खानदान के लोग नहीं रहते, लेकिन भगत सिंह की हवेली को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर एक फोटो गैलरी में तब्दील कर दिया गया है। ये हवेली बंटवारे के बाद फज्ल कादिर वरक को अलॉट हुई थी। अब उनका ही खानदान इसकी देखभाल करता है।
भगत सिंह का घर और स्कूल 2014 में उस वक्त के DCO (डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेशन ऑफिसर) ने करीब एक करोड़ रुपए खर्च कर ठीक कराए थे। नूरुल अमीन मेंगल ने अब सेक्रेटरी लोकल गवर्नमेंट बनने के बाद ‘दिलकश लायलपुर’ के नाम से भगत सिंह से जुड़ी इमारतों को बेहतर करने का बीड़ा उठाया है।
2014 में जब सरकार ने भगत सिंह की हवेली को सकाफती वरसा करार दिया तो उसे पुरानी बुनियादों पर दोबारा बहाल करने के लिए छत के कुछ बाले और शहतीर बदले गए और बाकी हिस्से को रंदा लगाकर नया किया गया। इसमें लगे दरवाजे, खिड़कियां, फर्श और छतें उसी दौर की हैं।
यहां भगत सिंह द्वारा इस्तेमाल की गई तिजोरी आज भी सुरक्षित है। बता दे, फज्ल कादिर के वारिस वरक साकिब वरक इस घर की देखभाल का खर्चा अपनी जेब से उठाते हैं।
भगत सिंह ने गांव के जिस स्कूल में पढ़ाई की थी वो स्कूल अब भी है। दो कमरों की वो इमारत आज भी उसी हालत में मौजूद है जैसी वो आज से सौ साल पहले थी। जिस क्लास रूम में कभी भगत सिंह पढ़ा करते थे, उसकी दीवारों पर अब कायद ए आजम मुहम्मद अली जिन्नाह और शायर ए मशरिक अल्लामा इकबाल के साथ-साथ भगत सिंह की तस्वीर भी लगी हुई है।
इस स्कूल के हेडमास्टर नसीर अहमद खुद भी भगत सिंह के चाहने वालों में शामिल हैं। उन्होंने अपने हीरो के सम्मान में एक नज्म लिखी है, जो इस इमारत के क्लास रूम और भगत सिंह की हवेली में मौजद है।
बता दे, भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन नाम का एक संगठन भगत सिंह की यादों को पाकिस्तान में संजोने का काम कई सालों से करता आ रहा है। इस संगठन के लोग गांव में 23 मार्च को उनके शहादत दिवस सरदार भगत सिंह मेले की भी आयोजन करते हैं है। कहते हैं उनके दादा ने एक पेड़ लगाया था जो करीब 120 साल पुराना आम का पेड़ है, वो आज भी वहां मैजूद है। उनके गांव का नाम बदल कर भगतपुरा रख दिया गया है।