inner_banner

जानें गैंगेस्टर विकास दुबे और देवेंद्र मिश्र की 22 साल पुरानी दुश्मनी की कहानी, क्यों विकाश दुबे की जमकर हुई पिटाई

  • 2 जुलाई काे विकाश और उसके गैंग ने सीओ देवेंद्र मिश्र की हत्या की
  • 10 जुलाई को कानपुर से 17 किमी पहले भौंती में पुलिस ने विकाश का एनकाउंटर किया

News24 Bite

July 12, 2020 9:39 am

Kanpur Gangster Vikas Dubey story. कानपुर में 2 जुलाई को 8 पुलिसवालों की हत्या कर सुर्ख़ियो में आया गैंगस्टर विकास दुबे ( Vikash Dubey ) और दिवंगत सीओ देवेंद्र मिश्र ( CO Devendra Mishra ) के बीच करीब 22 सालों से दुश्मनी चल रही थी। जिसका अंत जुलाई, 2020 के शुरुआती 10 दिन में हुआ।

2 जुलाई की देर रात कानपुर के बिकरु (Bikroo) गांव में विकास और उसकी गैंग ने सीओ देवेंद्र मिश्र एवं उनके सात साथियों को बेरहमी से मार डाला तो ठीक 8 दिनों बाद यानी 10 जुलाई को उत्तरप्रदेश पुलिस ने विकास दुबे का एनकाउंटर कानपुर शहर से 17 किमी दूर भौंती में करके 8 पुलिसवालों की मौत का बदला ले लिया।

देवेंद्र मिश्र और विकास दुबे की 22 साल पुरानी दुश्मनी

गैंगेस्टर विकाश दुबे और देवेंद्र मिश्र के बिच दुश्मनी की शुरुआत सन 1998 में हुई थी। जब गैंगस्टर विकास दुबे को कल्यानपुर थाने की पुलिस ने स्मैक की 30 पुड़ियां के साथ गिरफ्तार किया था। विकास थाने लाया गया जहां वह तत्कालीन थानाध्यक्ष हरिमोहन यादव से भिड़ गया। पुलिसवालों ने चुप कराने की कोशिश की तो वह गाली-गलौज करना लगा।

देवेंद्र मिश्र उस वक्त कल्यानपुर में सिपाही थे। देवेंद्र मिश्र को विकास दुबे की थानाध्यक्ष के साथ बदसलूकी बर्दाश्त नहीं हुई। उन्होंने आव देखा न ताव और बेंत से विकास दुबे की जमकर मरमम्त किया और हवालात में बंद कर दिया। तब विकास ने देवेंद्र मिश्र को धमकी देते हुए देख लेने की बात कही थी। कहा जाता है कि उस समय वहां के बसपा विधायक और अब के भाजपा विधायक के अलावा पूर्व सांसद विकास दुबे की पैरवी करने के लिए थाने पहुंच गए थे।

देवेंद्र को दो बार आउट ऑफ टर्न प्रमोशन मिला

उत्तर प्रदेश के बांदा (Banda ) जिले के रहने वाले देवेंद्र मिश्र साल 1981 में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे। फिर विभागीय परीक्षा पास किया और दरोगा बने। साल 2005 में उन्होंने उन्नाव के आसीवन थाने का इंचार्ज बनाया गया।

देवेंद्र ने उन्नाव में एक शातिर अपराधी का एनकाउंटर किया। बदले में उन्हें आउट ऑफ टर्न प्रमोशन मिला। इसके बाद 2016 में गाजियाबाद में तैनाती के दौरान दोबारा आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पाकर पुलिस उपाधीक्षक (DSP) बने थे।

पुलिस उपाधीक्षक बनते ही विकास के खिलाफ मोर्चा खोला

बता दे, कल्यानपुर थाने में सिपाही रहे देवेंद्र मिश्र जब बिल्हौर सर्किल के सीओ बनकर आए तभी से वे विकास की हर एक गतिविधि पर नजर बनाए हुए थे। लेकिन कहा जा रहा है कि सीओ देवेंद्र को विकास के लोकल थाना चौबेपुर से बिल्कुल सहयोग नहीं मिल पा रहा था। सीओ देवेंद्र अपने स्तर से विकास के किसी भी गलत काम को नहीं होने दे रहे थे। जिसको लेकर देवेंद्र और विकास के बीच आमने-सामने भी झड़प हो चुकी थी। दिन पर दिन दोनों के बीच दुश्मनी बढ़ती जा रही थी।

वहीं, दूसरी तरफ चौबेपुर थाने के निलंबित एसओ विनय तिवारी की विकास से दोस्ती गहरी होती जा रही थी। एसओ विनय सीओ देवेंद्र की हर एक गतिविधि की जानकारी गैंगेस्टर विकास तक पहुंचाने का काम करता था।

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, एसओ विनय सीओ देवेंद्र के खिलाफ गैंगस्टर विकास का कान भरता था कि सीओ उसके एनकाउंटर की तैयारी कर रहे हैं। जिसका नतीजा यह हुआ कि 2 जुलाई को एक मामले में विकाश को गिरफ्तार करने पहुंचे सीओ देवेंद्र और उनके 7 साथियो को मौत के घाट उतार दिया, अगर चौबेपुर थाने का एसओ विनय विकाश दुबे से नहीं मिला होता तो सायद आज सीओ देवेंद्र जिंदा होते।

मेरे खिलाफ सुबूत नहीं जुटा पाओगे- विकाश दुबे

10 जुलाई, शुक्रवार की सुबह उज्जैन से कानपुर लाने के दौरान कानपुर से 17 किमी पहले भौंती में पुलिस ने विकास को कथित एनकाउंटर में मार गिराया। उज्जैन के महाकाल मंदिर से गिरफ्तारी के बाद विकास दुबे को इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि कानपुर की सीमा में दाखिल होते ही उसका एनकांउटर हो जाएगा।

पुलिस सूत्रो के अनुसार अनुसार, विकास ने पुलिस की टीम से कहा था कि मेरे खिलाफ सुबूत नहीं जुटा पाओगे। 2 जुलाई को घटना वाली रात किसी ने नहीं देखा है कि, कहां से गोलियां चल रही थी? और कौन गोलियां चला रहा था। मैं तो कोर्ट में बोल दूंगा कि मैं तो था ही नहीं। मेरे पास कोई लाइसेंसी असलहा भी नहीं है। चार से पांच साल बाद मेरी जमानत हो जाएगी।

ad-s
ad-s