इस साल चौठचंद्र का समय
जाने चौठचंद्रा पर्व के पीछे श्रापित चंद्रमा की कहानी
वैसे तो कई कथाएं इस संदर्भ में प्रचलित है लेकिन पौराणिक शास्त्रों के अनुसार चंद्रमा को अपने सुंदरता पे बहुत धमंड हो गया था। एक बार की बात है गणेशजी कहीं से भोजन करके आ रहे थे तभी रास्ते में उनके सामने चंद्रमा आ गए। गणेशजी के बड़े उदर और सूंड को देखकर चंद्रमा अपने सौंदर्य के अभिमान में हंसने लगे। चंद्रमा के इस व्यवहार से गणेश जी को क्रोध आ गया। क्रोधित होकर गणेश जी ने चंद्रमा से कहा कि तुम्हें अपने रूप का अहंकार हो गया है इसलिए तु्म्हें क्षय होने का शाप देता हूं। तुमको जो भी देखेगा उसे समाज में झूठा कलंक लगेगा। तब शाप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने भाद्र मास, जिसे भादो कहते हैं की चतुर्थी तिथि को गणेश भगवान की पूजा की, तब जाकर गणेश जी ने कहा, “जो आज की तिथि में चांद के पूजा के साथ मेरी पूजा करेगा, उसको कलंक नहीं लगेगा” तब से यह प्रथा प्रचलित है।
चौठचन्द्र के दिन चांद को कैसे देखे
शास्त्रों में बताया गया है कि चौठ चंद्र के दिन चांद को देखने से कलंक लगता है लेकिन जो लोग भाद्र मास में हर दिन चांद को देखते हैं उन्हें कलंक नहीं लगता है। जो लोग इस तिथि में चांद को देखना चाहते हैं उन्हें हाथ में फल, मिठाई या दही लेकर चांद के दर्शन करना चाहिए। इससे चंद्र दर्शन का अशुभ फल नहीं मिलता है और जिससे कलंक नहीं लगता है।
चौठचंद्र पूजा का मंत्र
पर्व के दिन चन्द्रमा को देखते हुए यह मंत्र पढ़ना चाहिए :
" />सिहः प्रसेनमवधीत सिंहो जाम्बवता हतः ।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ॥
महान पर्व चौरचन (Chaurchan) : यह महान पर्व उत्तर भारत खास कर बिहार के मिथिला (Mithila) और अंगिका भाषी अंगप्रदेश में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस पर्व में चांद की पूजा बड़ी धूमधाम से होती है। यह पर्व चौठचन्द्र, चौरचन या चोरचंदा आदि नामों से भी जाना जाता है। पौराणिक शास्त्रों में इसे कलंक चतुर्दशी भी कहा गया है, और यह पर्व भाद्रमास या भादव के चतुर्थी तिथि को यानी गणेश चतुर्दशी को मनाया जाता है। यह पर्व काफी हद तक महान पर्व छठ से मिलता जुलता है छठ पूजा में भगवान भास्कर की आराधना होती है जबकि चौरचन में चंद्रमा की पूजा होती है।
इस साल चौठचंद्र का समय
जाने चौठचंद्रा पर्व के पीछे श्रापित चंद्रमा की कहानी
वैसे तो कई कथाएं इस संदर्भ में प्रचलित है लेकिन पौराणिक शास्त्रों के अनुसार चंद्रमा को अपने सुंदरता पे बहुत धमंड हो गया था। एक बार की बात है गणेशजी कहीं से भोजन करके आ रहे थे तभी रास्ते में उनके सामने चंद्रमा आ गए। गणेशजी के बड़े उदर और सूंड को देखकर चंद्रमा अपने सौंदर्य के अभिमान में हंसने लगे। चंद्रमा के इस व्यवहार से गणेश जी को क्रोध आ गया। क्रोधित होकर गणेश जी ने चंद्रमा से कहा कि तुम्हें अपने रूप का अहंकार हो गया है इसलिए तु्म्हें क्षय होने का शाप देता हूं। तुमको जो भी देखेगा उसे समाज में झूठा कलंक लगेगा। तब शाप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने भाद्र मास, जिसे भादो कहते हैं की चतुर्थी तिथि को गणेश भगवान की पूजा की, तब जाकर गणेश जी ने कहा, “जो आज की तिथि में चांद के पूजा के साथ मेरी पूजा करेगा, उसको कलंक नहीं लगेगा” तब से यह प्रथा प्रचलित है।
चौठचन्द्र के दिन चांद को कैसे देखे
शास्त्रों में बताया गया है कि चौठ चंद्र के दिन चांद को देखने से कलंक लगता है लेकिन जो लोग भाद्र मास में हर दिन चांद को देखते हैं उन्हें कलंक नहीं लगता है। जो लोग इस तिथि में चांद को देखना चाहते हैं उन्हें हाथ में फल, मिठाई या दही लेकर चांद के दर्शन करना चाहिए। इससे चंद्र दर्शन का अशुभ फल नहीं मिलता है और जिससे कलंक नहीं लगता है।
चौठचंद्र पूजा का मंत्र
पर्व के दिन चन्द्रमा को देखते हुए यह मंत्र पढ़ना चाहिए :
सिहः प्रसेनमवधीत सिंहो जाम्बवता हतः ।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ॥