Tokyo Olympics 2021. आखिरकार वेटलिफ्टिंग में भारत का 21 साल का इंतजार खत्म हुआ। मणिपुर की मीराबाई चानू (Mirabai Chanu) ने टोक्यो ओलिंपिक में भारत को पहला मेडल दिला दिया है। उन्होंने 49 किलोग्राम वेट कैटेगरी में टोटल 202 किलो वजन उठाकर सिल्वर जीता। इस तरह देश को वेटलिफ्टिंग में 21 साल बाद ओलिंपिक मेडल मिला है।
इससे पहले 2000 सिडनी ओलिंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने ब्रॉन्ज जीता था। गौरतलब है कि मीराबाई 2016 रियो ओलिंपिक में अपने एक भी प्रयास में सही तरीके से वेट नहीं उठा पाई थीं। उनकी हर कोशिश को डिस-क्वालिफाई कर दिया गया था।
बता दे, मीराबाई ने ओलिंपिक में जाने से पहले कहा था, “मैं टोक्यो ओलिंपिक में जरूर मेडल जीतूंगी। मेरे पास ओलिंपिक खेलने का अनुभव है। मैं अपने पहले ओलिंपिक में मेडल जीतने से चूक गई थी। तब अनुभव की कमी के कारण मैं मेडल जीतने में सफल नहीं हो सकी थी।”
‘डिड नॉट फिनिश’ से चैंपियन बनने की कहानी
मीराबाई के 2016 रियो ओलिंपिक से ओलिंपिक चैंपियन बनने तक की कहानी जबरदस्त रही है। 2016 में जब वह भार नहीं उठा पाई थीं, तब उनके नाम के आगे – ‘डिड नॉट फिनिश’ लिखा गया था। किसी प्लेयर का मेडल की रेस में पिछड़ जाना अलग बात है और क्वालिफाई ही नहीं कर पाना दूसरी। डिड नॉट फिनिश के टैग ने मीरा का मनोबल तोड़ दिया था।
2016 ओलिंपिक में उनके इवेंट के वक्त भारत में रात थी। बहुत कम ही लोगों ने वह नजारा देखा होगा, जब वेट उठाते वक्त उनके हाथ अचानक से रुक गए। यही वेट इससे पहले उन्होंने कई बार आसानी से उठाया था। रातों-रात मीराबाई मेडल नहीं जीतने पर बस एक आम एथलीट रह गईं। इस हार से वे डिप्रैशन में गईं और उन्हें साइकेट्रिस्ट का सहारा लेना पड़ा।
इस हार ने उन्हें झकझोर कर रख दिया गया था। एक वक्त तो उन्होंने वेटलिफ्टिंग को अलविदा कहने का मन बना लिया था। हालांकि, खुद को प्रूव करने के लिए मीरा ने ऐसा नहीं किया। यही लगन उन्हें सफलता तक ले आई। 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने गोल्ड और अब ओलिंपिक में सिल्वर मेडल जीता है।
बचपन पहाड़ से जलावन की लकड़ियां बीनते बीता
साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाली मीराबाई चानू का जन्म 8 अगस्त 1994 को मणिपुर के नोंगपेक काकचिंग गांव में हुआ था। मीराबाई चानू का जीवन संघर्ष से भरा रहा है। बचपन पहाड़ से जलावन की लकड़ियां बीनते बीता। वह बचपन से ही भारी वजन उठाने की मास्टर रही हैं। मीराबाई बचपन में तीरंदाज बनना चाहती थीं। लेकिन कक्षा आठ तक आते-आते उनका लक्ष्य बदल गया। मीराबाई चानू के पिता, सैखोम कृति मीटी और माता, टॉम्बी लीमा ने अपनी बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए शुरुआत में बहुत संघर्ष किया।
बाँस से प्रैक्टिस किया करती
मीरा ने 2007 में जब प्रैक्टिस शुरु की तो पहले-पहल उनके पास लोहे का बार नहीं था तो वो बाँस से ही प्रैक्टिस किया करती थीं। गाँव में ट्रेनिंग सेंटर नहीं था तो 50-60 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग के लिए जाया करती थीं। डाइट में रोज़ाना दूध और चिकन चाहिए था, लेकिन एक आम परिवार की मीरा के लिए वो मुमकिन न था। उन्होंने इसे भी आड़े नहीं आने दिया। 11 साल में वो अंडर-15 चैंपियन बन गई थीं और 17 साल में जूनियर चैंपियन।
दरअसल कक्षा आठ की किताब में मशहूर वेटलिफ्टर कुंजरान देवी का जिक्र था
जिसे पढ़कर वे भी वेटलिफ्टर बनने की तमन्ना पाल बैठी और यही से उनकी सफर शुरू हुई वेटलिफ्टर बनने की। बता दे, वे कुंजरानी देवी को अपना आदर्श मानती हैं।