सत्य कथा. दो साल पहले की बात है। भादो का महीना था। आकाश में काले कजरारे बादल छाए हुए थे। लगता था कि अब बारिश आ जाएगी। मेरे मकान वाले हिस्से में ही कुछ जमीन खाली है जिसमें मक्के की फसल लगी थी।
ठीक बारह बजे रात में नींद से उनींद हुआ। लघुशंका महसूस हुई। विद्युत -प्रवाह अवरुद्ध था। बाहर का वातावरण बड़ा ही भयावह लग रहा था। घटाटोप अंधकार में कुछ भी सुझ नहीं रहा था। जुगनु टिमटिमा रहे थे। गाँव से पूरब एक विशाल तालाब है, जहाँ से सियारों के बोलने की आवाज आ रही थी। अब रिमझिम बारिश शुरू हो गई।
लघुशंका से निवृत्त होकर मैं चापाकल पर हस्त प्रक्षालन हेतु गया। चापाकल के ठीक नीचे पूरब दिशा में एक छोटा सा आम का वृक्ष है। जैसे ही चापाकल चलाना शुरू किया, उसकी खटखटाहट की आवाज आने लगी। ठीक उसी समय उस वृक्ष पर से किसी के कूदने की आहट महसूस हुई। जब वह कूदा तो लगा कि दस पन्द्रह साल का कोई लड़का कूदा हो। जब वह भागने लगा, तो लगा कि कुत्ता तेजी से भाग रहा हो। मक्के की खड़खड़ाहट स्पष्ट सुनाई दे रही थी। डर के मारे दिल की धड़कन तेज हो गई। तब से विद्युत बाधित रहने पर मैं बिना टौर्च लिए बाहर नहीं निकलता हूँ।
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